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अचेतन पर उद्धरण

किसी के शब्दों की लय में झूलना एक सुखद, लेकिन अचेतन निर्भरता हो सकती है।

रघुवीर चौधरी

मनुष्य की अचेतन क्रिया की यंत्रवत कारीगरी और यांत्रिक साधन ही आगे चलकर स्वतंत्र कलाओं में परिणत होते गए।

विजयदान देथा

जो जीवन को पाना चाहता है, उसे अपनी निद्रा और मूर्च्छा छोड़नी होगी।

ओशो

चैतन्य को जड़शक्ति का औद्धत्य लील जाने को व्याकुल है।

कृष्ण बिहारी मिश्र

भाषा का निर्माण उसकी सजग चेतना का परिणाम नहीं, उसकी अचेतन क्रिया का अगोचर प्रयास है।

विजयदान देथा

अचेतन उतना ही तुच्छ और बेतुका है जितना कि चेतन।

जे. कृष्णमूर्ति