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अचेतन पर उद्धरण

किसी के शब्दों की लय में झूलना एक सुखद, लेकिन अचेतन निर्भरता हो सकती है।

रघुवीर चौधरी

सार्त्र ने लिखा है : जब व्यक्ति की चेतना सुषुप्त अवस्था में होती है, तो उसके लिए बाहरी दुनिया भी सोई होती है।

पॉलो फ़्रेरा

मनुष्य की अचेतन क्रिया की यंत्रवत कारीगरी और यांत्रिक साधन ही आगे चलकर स्वतंत्र कलाओं में परिणत होते गए।

विजयदान देथा

जड़ीभूत सौंदर्याभिरुचि; एक विशेष शैली (को) दूसरी शैली के विरुद्ध स्थापित करती है।

गजानन माधव मुक्तिबोध

सिर्फ़ खाने, पीने, हँसने, सोने में व्यस्त रहने से जीव को मौत भूल जाती है। मौत के भूलने से प्रभु-पति को विस्मृत करके, जीव वो काम करता रहता है जो उसके दुःख का कारण बनते हैं।

गुरु नानक

चैतन्य को जड़शक्ति का औद्धत्य लील जाने को व्याकुल है।

कृष्ण बिहारी मिश्र

भाषा का निर्माण उसकी सजग चेतना का परिणाम नहीं, उसकी अचेतन क्रिया का अगोचर प्रयास है।

विजयदान देथा

जड़ से चेतन की उत्पत्ति होती हो और चेतन से जड़ की उत्पत्ति होती हो—ऐसा अनुभव कभी किसी को नहीं होता।

श्रीमद् राजचंद्र

जो जीवन को पाना चाहता है, उसे अपनी निद्रा और मूर्च्छा छोड़नी होगी।

ओशो

अचेतन उतना ही तुच्छ और बेतुका है जितना कि चेतन।

जे. कृष्णमूर्ति