
सारी कलाएँ एक-दूसरे में समोई हुई हैं, हर कला-कृति दूसरी कलाकृति के अंदर से झाँकती है।

साहित्य, लालित्य के बचाव में प्रयत्नशील बने रहने की भी भूमि है।

कविता के रंग चित्रकला के प्रकृति-रंग नहीं होते।

आधुनिकतावाद भले ही अलग-अलग टुकड़ों और बारीकियों में सफल रहा हो, सारत: वह विफल हो गया।

जागृत राष्ट्र में ही विलास और कलाओं का आदर होता है।

आधुनिकता एक मूल्य नहीं है, मूल्य के प्रति एक दृष्टि है।

कोई भी कला सबसे पहले रचनात्मकता का अनुभव है। रचनात्मकता ही एक कला का प्रमुख विषय (content) होता है।

कला कैलेंडर की चीज़ नहीं है।

किसी भी कला का जीवन अपने में अकेला होते हुए भी संदर्भ-बहुल भी होता है।

श्रेष्ठ कलाओं में अंतर्विरोध नहीं होता, विभिन्नताओं का समन्वय और सहअस्तित्व होता है।

संस्कृति मानव-चेतना का सार पदार्थ है।