अलौकिक शिशु-गायक मास्टर मदन
जो लोग जन्म-परंपरा को नहीं मानते—जो लोग इस बात पर विश्वास नहीं करते कि पूर्व-जन्म के संस्कार बीज रूप से बने रहते हैं और समुचित उत्तेजना पाते ही फूलने और फलने लगते हैं—उन्हें मास्टर मदन को देखना चाहिए, उसका गाना सुनना चाहिए और यह सोचना चाहिए कि इस शिशु
महावीर प्रसाद द्विवेदी
साहित्य का फूल अपने ही वृंत पर
कला निष्कलुष है। दुनिया में वह अपना सानी नहीं रखती। साहित्यकार के लिए उसके अपर अंगों के ज्ञान से पहले बोध आवश्यक है। जैसे बीजमंत्र, उसका अर्थ, पश्चात् अनिंद्द सुंदर रूप उसी के फूल की तरह उसके अर्थ के। डेंटल पर खिला हुआ। नया जन्म जिस तरह, एक युग की संचित
सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'
कला का प्रयोजन : स्वांतःसुखाय या बहुजनहिताय
हमारे युग का संघर्ष आज केवल राजनीतिक तथा आर्थिक क्षेत्रों ही में प्रतिफलित नहीं हो रहा है, वह साहित्य, कला तथा संस्कृति के क्षेत्र में भी प्रवेश कर चुका है। यह एक प्रकार से स्वास्थ्यप्रद ही लक्षण है कि हम अपने युग की समस्याओं का केवल बाहरी समाधान ही
सुमित्रानंदन पंत
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