
नाटक में अगर कहीं किसी मतवाले व्यक्ति का पागलपन दिखाना हो तो वहाँ अगर सचमुच के किसी मतवाले व्यक्ति को मंच पर छोड़ दिया जाए, तो वह एक तरह की दुर्घटना कर बैठेगा। दूसरी तरफ़ जिसमें उन्मत्त्ता का रेशा भी न हो; अगर मंच पर लाकर उसे छोड़ दिया जाए तो भी वही विपत्ति घटेगी–––दोनों पक्ष ही उस जात्रा-नाटक को मिट्टी में मिला बैठेंगे।

प्रत्येक भावमुद्रा एक घटना है—अपने आप में एक नाटक। वह स्टेज जिस पर यह नाटक खेला जाता है—वह विश्व रंगमंच है, जो स्वर्ग की ओर खुलता है।

जो वेदों का अध्ययन तथा उपनिषद्, साँख्य और योगों का ज्ञान है, उनके कथन से क्या फल है? क्योंकि उनसे नाटक में कुछ भी गुण नहीं आता है। यदि नाटक के वाक्यों की प्रौढ़ता और उदारता तथा अर्थ-गौरव है, तो वही पांडित्य और विदग्धता की सूचक है।

भिन्न-भिन्न रुचि वाले लोगों के लिए प्रायः नाटक ही एक ऐसा उत्सव है जिसमें सबको एक-सा आनंद मिलता है।

तुम लोग इज़्ज़तों में और पर्दों में रहकर जाने किन-किन व्यर्थताओं को अपने साथ लपेट लेते हो और उनमें गौरव मानते हो। यह सब तुम लोगों की झूठी सभ्यता है, ढकोसला है। फिर कहते हो, हम सच को पाना चाहते हैं। तुम्हारा सच कपड़ों में है, लिबास में है और सच्चाई से डरने में है।

जितने भी अधिक से अधिक महत्त्वपूर्ण कार्य होते हैं वे सब अनायास ही नम्रतापूर्वक और बिना किसी आडंबर के हुआ करते हैं। न तो हल चलाने का कार्य और न इमारत बनाने या पशु चराने या सोचने के कार्य ही वर्दी पहनकर, दीपों की चमक-दमक में और तोपों की गर्जन के बीच किए जा सकते हैं। इसके विपरीत दीपों की जगमगाहट, तोपों की गड़गड़ाहट, संगीत, वर्दी, सफ़ाई और चमक-दमक यह प्रकट करते हैं कि उनके बीच जो कुछ भी हो रहा है वह सब महत्तवहीन है। महान और सच्चे कार्य सदा सरल और विनम्र होते हैं।

उपदेश करो अपने लिए, तभी तुम्हारा उपदेश सार्थक होगा। जो कुछ दूसरों से करवाना चाहते हो, उसे पहले स्वयं करो; नहीं तो तुम्हारे नाटक के अभिनय के सिवा और कुछ भी नहीं है।

जीवन-नाटक में कितनी भूमिकाएँ कीं, कितने अभिनय किए, कितने लोग कितने रूपों में जीवन की भूमिका अभिनय कराते-कराते मेरा हृदय विदीर्ण कर चले गए।

जीवन-नाटक के हर अंक में उसका रूप बदलता रहता है।

जो कुछ फ़िल्मों में होता है, वह नाटक और मनोरंजन के लिए होता है।

मैं सदा हर नाटक की शुरुआत पात्रों को अ ब स कह कर करता हूँ।

अधिसंख्य नाटक एक पंक्ति, एक शब्द या एक छवि (इमेज) से जन्म लेते हैं। इस शब्द के तत्काल बाद अकसर एक छवि उभरती है।

नाटक श्मशान में घटित होता है। उसमें चार पुरूष एक ऐसी युवती के शव के दाह-संस्कार की राह देख रहे होते हैं जिसका इस दुनिया में अपना कोई नहीं हैं।