हनुमान प्रसाद पोद्दार की संपूर्ण रचनाएँ
उद्धरण 10

भगवान् की पूजा के लिए सबसे अच्छे पुष्प हैं—श्रद्धा, भक्ति, प्रेम, दया, मैत्री, सरलता, साधुता, समता, सत्य, क्षमा आदि दैवी गुण। स्वच्छ और पवित्र मन मंदिर में मनमोहन की स्थापना करके इन पुष्पों से उनकी पूजा करो। जो इन पुष्पों को फेंक देता है और केवल बाहरी फूलों से भगवान् को पूजना चाहता है, उसके हृदय में भगवान आते ही नहीं, फिर वह पूजा किसकी करेगा?

प्रेम नित्य, आनंद, नित्य—दोनों ही भगवत्स्वरूप हैं। आनंद की भित्ति प्रेम और प्रेम का विलक्षण रूप आनंद। इस प्रेम का कोई निर्माण नहीं करता। जहाँ सर्वत्याग होता है, वहीं इसका प्राकट्य उदय हो जाता है। जहाँ त्याग, वहाँ प्रेम और जहाँ प्रेम, वहीं आनंद। भगवान् प्रेमनंदस्वरूप हैं। अतएव भगवान की यह प्रेम-लीला अनादिकाल से अनन्तकाल तक चलती ही रहती है। न इसमें विराम होता है, न कभी कमी आती है। इसका स्वभाव वर्धनशील है।