डर पर उद्धरण
डर या भय आदिम मानवीय
मनोवृत्ति है जो आशंका या अनिष्ट की संभावना से उत्पन्न होने वाला भाव है। सत्ता के लिए डर एक कारोबार है, तो आम अस्तित्व के लिए यह उत्तरजीविता के लिए एक प्रतिक्रिया भी हो सकती है। प्रस्तुत चयन में डर के विभिन्न भावों और प्रसंगों को प्रकट करती कविताओं का संकलन किया गया है।


भय का राज्य पल भर में फैल जाता है।

मनुष्य किसी भी चीज़ से उतना नहीं डरता जितना कि अज्ञात के स्पर्श से।

मैंने दुखों, जीवन के ख़तरों और मृत्यु के बाद के जीवन के बारे में, सज़ा के बारे में… कम उम्र में ही जान लिया। इस सबकी उम्मीद गुनाहगार नर्क में करते हैं।

जाओ, उड़ो, तैरो, कूदो, उतरो, पार करो, अज्ञात से प्रेम करो, अनिश्चित से प्रेम करो, जिसे अब तक नहीं देखा है—उससे प्रेम करो… किसी से भी प्रेम मत करो—तुम जिसके हो, तुम जिसके होगे—अपने आपको खुला छोड़ दो, पुराने झूठ को हटा दो, जो नहीं किया उसे करने की हिम्मत करो, वही करने में तुम्हें ख़ुशी मिलेगी… और प्रसन्न रहो, डर लगने पर वहाँ जाओ जहाँ जाने से डरते हो, आगे बढ़ो, ग़ोता लगाओ, तुम सही मार्ग पर हो।

डर और बेवक़ूफ़ी भरे अहंकार के चलते कभी भी किसी ऐसे व्यक्ति को खोने न दें जो आपके लिए मूल्यवान है।

कामना, भय, लोभ अथवा जीवन-रक्षा के लिए भी धर्म का त्याग नहीं करना चाहिए। धर्म नित्य है जबकि सुख-दुःख अनित्य हैं, जीव नित्य है तथा बंधन का हेतु अनित्य है।

लोग केवल तभी झूठ बोलते हैं, जब कोई ऐसी चीज़ होती है जिसे खोने का उन्हें बहुत डर होता है।

पुरुष डरते हैं कि स्त्रियाँ उनकी हँसी उड़ाएँगी। स्त्रियाँ डरती हैं कि पुरुष उन्हें मार डालेंगे।

मैंने जितनी भी मुश्किलें झेली हैं, वे मुझे एक भयानक दर्द के लिए तैयार करने की दिशा में केवल पूर्वाभ्यास थीं।

डर की उपस्थिति को स्वीकार करना विफलता को जन्म देना है।

मनुष्य एक दूसरे के प्रति भयानक रूप से क्रूर हो सकते हैं।

बूढ़ा हो जाने का डर इस बात से पैदा हुआ है कि मनुष्य अब वैसा जीवन नहीं जी रहा है, जैसा कि वह चाहता है।

मेरा विश्वास करो, नीरस व्यक्ति उपनिवेशवादियों से अधिक भयानक हैं।

जब हम अपनी असफलताओं को गंभीरता से नहीं लेना शुरू करते हैं, तो इसका मतलब है कि हम उनसे डरना बंद कर रहे हैं।

अपने अनुभव, भाषा और ज्ञान की गरिमा के बारे में कोई भय या शर्म मत रखो।

किसी ने मुझे कभी नहीं बताया कि दुःख बहुत कुछ डर की तरह महसूस होता है।

जब हम मृत्यु और अँधेरे को देखते हैं, तो हम अज्ञात से डरते हैं और कोई बात नहीं है।

वह सब कुछ जो आज मेरे पास है, डर और बीमारी के बग़ैर मैं उस सबमें निपुणता हासिल नहीं कर सकता था।

…पुराने मूल्य व्यर्थ और बचकाने भय ग़ायब हो गए।

साहस भय का प्रतिरोध है। साहस भय का न होना नहीं है, बल्कि भय पर विजय प्राप्त करना है।

जब हम डर को छोड़ देते हैं, हम लोगों के क़रीब आ सकते हैं; हम पृथ्वी के क़रीब आ सकते हैं, हम उन सभी स्वर्गीय प्राणियों के क़रीब आ सकते हैं जो हमारे चारों ओर हैं।



मृत्यु का भय जीवन के भय से उत्पन्न होता है। जो पूरी तरह से जीता है, वह किसी भी समय मरने के लिए तैयार है।


जब आप उम्मीद और डर को ख़त्म कर देते हैं, तब आप मर जाते हैं।

सारा जगत दंड से विवश होकर ही रास्ते पर रहता है क्योंकि स्वभावतः सर्वथा शुद्ध मनुष्य मिलना कठिन है। दंड के भय से डरा हुआ मनुष्य ही मर्यादा पालन में प्रवृत्त होता है।

धन प्राप्ति के सभी उपाय मन का मोह बढ़ाने वाले हैं। कृपणता, दर्प, अभिमान, भय और उद्वेग-इन्हें विद्वानों ने देहधारियों के लिए धनजनित दुःख माना है।

मैं कई चीज़ों में विफल रही हूँ, लेकिन मैं कभी डरी नहीं।

ईश्वर दर्शकों के साथ खेलता एक विदूषक है, जिसके दर्शक हँसने से भी डरते हैं।

मैंने उसकी तलाश नहीं की, क्योंकि मैं उस रहस्य को ख़त्म करने से डरती थी जिसे हम उन लोगों से जोड़ देते हैं जिन्हें हम बस थोड़ा-बहुत जानते हैं।

मैंने अपने दम पर शहर में घूमने का जोख़िम उठाया है। मैं पुस्तकालय के मानचित्रों, भूमिगत मानचित्रों, बस के मानचित्रों और नियमित मानचित्रों को देखती हूँ और उन्हें याद रखने की कोशिश करती हूँ। मुझे खो जाने का डर है; नहीं, मुझे किसी बालूपंक में डूबने की तरह शहर में डूबने से डर लगता है। मैं ऐसी चीज़ द्वारा सोखे जाने से डरती हूँ, जिससे मैं कभी नहीं बच सकती हूँ।

इससे आपको क्या फ़र्क़ पड़ता है कि आपको डराने वाली चीज़ असली है या नहीं?

आपको इतना डरने की ज़रूरत नहीं है। प्यार सिर्फ़ इस वजह से ख़त्म नहीं होता कि हम एक-दूसरे से मिलते नहीं हैं…

मेरा डर मेरा सच एक आश्चर्य है।

मैं अक्सर ख़ुद से पूछता हूँ कि क्या मैं दुबारा हिरासत में लिए जाने से डरता हूँ। मुझे आज़ादी से प्रेम है जैसा किसी और को है, शायद सबसे अधिक। लेकिन यह भी एक त्रासदी है कि आप अपनी ज़िंदगी एक डर में बिताएँ। यह डर असल में आज़ादी के ख़त्म होने से भी बुरा है।

मुझे अपनी कविताओं से भय होता है, जैसे मुझे घर जाते हुए भय होता है।

लोग भूल जाते हैं दहशत जो लिख गया कोई किताब में।

डायरी में भी सब कुछ दर्ज नहीं किया जाता। उस डायरी में भी नहीं जो छपवाई नहीं जानी है। मतलब यह कि ख़ुफ़िया डायरी पर भी यह ख़ौफ़ हावी रहता है कि कोई मुझे पढ़ लेगा।

मंच का मोह मुझे नहीं, भय है। इस भय ने मुझे कई प्रलोभनों से बचाया है।

डरने में उतनी यातना नहीं है जितनी वह होने में जिससे सबके सब केवल भय खाते हों।

जीवन निर्णय नहीं निरंतर भय है।

मैं ठीक-ठाक कारण तो नहीं बता सकता, पर इस ‘शास्त्र’ शब्द से मुझे डर लगता है—शायद इसलिए कि उसमें एक शासक की-सी ध्वनि है।

लोग भूल गए हैं एक तरह के डर को जिसका कुछ उपाय था। एक और तरह का डर अब वे जानते हैं जिसका कारण भी नहीं पता।

अपने को दुर्बल मानकर स्वयं ही अपनी अवहेलना न कर। इस आत्मा का अल्प से भरण-पोषण न कर। मन को कल्याणमय बनाकर निडर हो जा, भय को सर्वथा त्याग दे।

अविश्वास भी डर की निशानी है।

कोई भी घटना सीमित ही होती है, परंतु उसकी आसन्नता अधिक भयावह लगती है।

...घटना का दर्द सीमित होने पर भी आसन्नता हमारे सारे व्यक्तित्व को निरंतर थरथराती होती है।

घटना से अधिक से अधिक उसकी संभानाएँ मन को अधिक शंकालु बनाती है।