
भय ही अधर्म है; क्योंकि जीवन को न जानने के अतिरिक्त और क्या अधर्म हो सकता है?

अगर मनुष्य अपने धर्म के हार्द तक पहुँच जाए, तो समझना चाहिए कि वह दूसरे धर्मों के हार्द तक भी पहुँच गया है।
भय ही अधर्म है; क्योंकि जीवन को न जानने के अतिरिक्त और क्या अधर्म हो सकता है?
अगर मनुष्य अपने धर्म के हार्द तक पहुँच जाए, तो समझना चाहिए कि वह दूसरे धर्मों के हार्द तक भी पहुँच गया है।