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शिव पर उद्धरण

शिव का अर्थ है मंगलदाता।

यह भगवान शंकर का एक नाम है जिन्हें शंभू, भोलेनाथ, त्रिलोचन, महादेव, नीलकंठ, पशुपति, आदियोगी, रुद्र आदि अन्य नामों से भी जाना जाता है। इस चयन में शिव की स्तुति और शिव के अवलंब से अभिव्यक्त कविताओं का संकलन किया गया है।

मैं जन्म लेता हूँ, बड़ा होता हूँ, नष्ट होता हूँ। प्रकृति से उत्पन्न सभी धर्म देह के कहे जाते हैं। कर्तृत्व आदि अहंकार के होते हैं। चिन्मय आत्मा के नहीं। मैं स्वयं शिव हूँ।

आदि शंकराचार्य

मेरे लिए मृत्यु है, भय, जाति-भेद, पिता माता, जन्म, बंधु, मित्र और गुरु। मैं चिदानंद रूप हूँ। मैं शिव हूँ, मैं शिव हूँ।

आदि शंकराचार्य

मैं निर्विकल्प (परिवर्तन रहित) निराकार, विभुत्व के कारण सर्वव्यापी, सब इंद्रियों के स्पर्श से परे हूँ। मैं मुक्ति हूँ मेय (मापने में आने वाले)। मैं विदानंद रूप हूँ। मैं शिव हूँ। मैं शिव हूँ।

आदि शंकराचार्य

मैं सत् हूँ, असत् हूँ और उभयरूप हूँ। मैं तो केवल शिव हूँ। मेरे लिए संध्या है, रात्रि है, और दिन है, क्योंकि मैं नित्य साक्षीस्वरूप हूँ।

आदि शंकराचार्य