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जन्म पर उद्धरण

जन्म और जन्मदिन विषयक

कविताओं का एक चयन।

वास्तव में संकट इस तथ्य में है कि पुराना निष्प्राण हो रहा है और नया जन्म नहीं ले सकता।

अंतोनियो ग्राम्शी

मुझे लगता है कि व्यक्ति ईश्वर से आता है और ईश्वर के पास वापस जाता है, क्योंकि शरीर की कल्पना की जाती है और जन्म होता है, यह बढ़ता है और घटता है, यह मर जाता है और ग़ायब हो जाता है; लेकिन जीवात्मा शरीर और आत्मा का मेल है, जिस तरह एक अच्छी तस्वीर में आकार और विचार का अदृश्य संगम होता है।

यून फ़ुस्से

किंवदंती के अनुसार जब ईसा पैदा हुए तो आकाश में सूर्य नाच उठा। पुराने झाड़-झंखाड़ सीधे हो गए और उनमें कोपलें निकल आईं। वे एक बार फिर फूलों से लद गए और उनसे निकलने वाली सुगंध चारों ओर फैल गई। प्रति नए वर्ष में जब हमारे अंतर में शिशु ईसा जन्म लेता है, उस समय हमारे भीतर होने वाले परिवर्तनों के ये प्रतीक हैं। बड़े दिनों की धूप से अभिसिक्त हमारे स्वभाव, जो कदाचित् बहुत दिनों से कोंपलविहीन थे, नया स्नेह, नई दया, नई कृपा और नई करुणा प्रगट करते हैं। जिस प्रकार ईसा का जन्म ईसाइयत का प्रारंभ था, उसी प्रकार बड़े दिन का स्वार्थहीन आनंद उस भावना का प्रारंभ है, जो आने वाले वर्ष को संचालित करेगी।

हेलेन केलर

कई बार बातों से भ्रम पैदा हो जाता है।

रघुवीर चौधरी

जिस देश में आपने जन्म लिया है, उसके प्रति कर्त्तव्य पालन करने से बढ़कर संसार में कोई दूसरा काम है ही नहीं।

महात्मा गांधी

पृथ्वी स्वयं इस नए जीवन को जन्म दे रही है और सारे प्राणी इस आनेवाले जीवन की विजय चाह रहे हैं। अब चाहे रक्त की नदियाँ बहें या रक्त के सागर भर जाएँ, परंतु इस नई ज्योति को कोई बुझा नहीं सकता।

मैक्सिम गोर्की

ये तीन दुर्लभ हैं और ईश्वर के अनुग्रह से ही प्राप्त होते हैं—मनुष्य जन्म, मोक्ष की इच्छा और महापुरुषों की संगति।

आदि शंकराचार्य

पक्षी अंडे से बाहर निकलने के लिए संघर्ष करता है। अंडा ही दुनिया है। जो जन्म लेना चाहता है उसे एक दुनिया को नष्ट करना होगा।

हरमन हेस

आपके जीवन में सबसे महत्त्वपूर्ण दो दिन होते हैं, एक तो वह दिन जिस दिन आप पैदा होते हैं और दूसरा वह दिन जब आपको पता चलता है कि आपका जन्म क्यों हुआ है।

मार्क ट्वेन

नारियों का सम्मान स्वयं उनके कारण नहीं होता, बल्कि वह उनकी संतान और पुत्र प्रसव पर निर्भर करता है।

शरत चंद्र चट्टोपाध्याय

जैसे पके फलों को गिरने के अतिरिक्त कोई भय नहीं है, उसी प्रकार जिसने जन्म लिया है, उस मनुष्य को मृत्यु के अतिरिक्त कोई भय नहीं है।

वाल्मीकि

नई जगह में; यहाँ तक कि अच्छे से अच्छे अस्पताल में भी, कोई मरना नहीं चाहता। जन्म चाहे अस्पताल में हो, लेकिन मृत्यु घर में हो।

अमृतलाल वेगड़

मरने पर, जैसे भी हो, मैं अपने इस दुःखी देश में ही फिर से जन्म लूँ।

नलिनीबाला देवी

अन्यायपूर्वक दिए गए दंड ने भय और क्रोध को जन्म दिया।

दण्डी

मन केवल विचार है। सभी विचारों में, केवल ‘मैं’ का विचार ही मूल है। इस तरह मन केवल ‘मैं’ का विचार ही है। ‘मैं’ का विचार कब पैदा होता है? इसे अपने भीतर तलाश करो, तो ये ओझल हो जाता है। यह बुद्धि है। जहाँ से ‘मैं’ का लोप होता है, वहीं से ‘मैं-मैं’ का जन्म होता है। यही पूर्णम है।

रमण महर्षि

वृक्ष जब बढ़ रहा होता है, वह कोमल होता है; पर उसकी मृत्यु तभी हो जाती है, जब वह सूखकर कठोर हो जाता है।

आन्द्रेई तारकोवस्की

अबला-जन्म ही पराधीन है।

दयाराम

प्राणी जिस दिन से जन्म लेता है, उसी दिन उसके पीछे कर्म, मृत्यु, सुख-दुःख, जय-पराजय, लोभ, माया, आदि लग जाते हैं और उसे छेदते हैं।

चंदबरदाई

लोगों को अपनी भाषा की असीम उन्नति करनी चाहिए, क्योंकि सच्चा गौरव उसी भाषा को प्राप्त होगा जिसमें अच्छे अच्छे विद्वान जन्म लेंगे और उसी का सारे देश में प्रचार भी होगा।

महात्मा गांधी

मैं जन्म लेता हूँ, बड़ा होता हूँ, नष्ट होता हूँ। प्रकृति से उत्पन्न सभी धर्म देह के कहे जाते हैं। कर्तृत्व आदि अहंकार के होते हैं। चिन्मय आत्मा के नहीं। मैं स्वयं शिव हूँ।

आदि शंकराचार्य

भारतवर्ष की पवित्र भूमि है, उत्तम कुल में जन्म मिला है, समाज और शरीर भी उत्तम मिला है। ऐसी अवस्था में जो व्यक्ति क्रोध कठोर वचन त्याग कर वर्षा, जाड़ा, वायु और धूप को सहन करता हुआ चातक-हठ से भगवान् को भजता है, वही चतुर है। शेष सब तो सुवर्ण के हल में कामधेनु को जोतकर विषबीज ही बोते हैं।

तुलसीदास

अभावों में मरने की अपेक्षा संघर्ष करते हुए मरना अधिक अच्छा है, दुःखपूर्ण और निराश जीवन की अपेक्षा मर जाना बेहतर है। मृत्यु होने पर नया जन्म मिलेगा। और वे व्यक्ति अथवा राष्ट्र जो मरना नहीं जानते, यह भी नहीं जानते कि जिया कैसे जाता है।

जवाहरलाल नेहरू

मैं बाहर-भीतर विद्यमान, प्राचीनता से रहित तथा जन्म-मृत्यु और वृद्धत्व से रहित आत्मा हूँ—ऐसा जो जानता है वह किसी से क्यों डर सकता है।

आदि शंकराचार्य

संसार की कोई भी नारी ऐसे पुत्र को जन्म दे, अमर्षशून्य, उत्साहहीन, बल और पराक्रम से रहित तथा शत्रुओं का आनंद बढ़ाने वाला हो।

वेदव्यास

शरीर की उत्पत्ति के कारणरूप इन तीनों गुणों का उल्लंघन करके जन्म, मृत्यु, वृद्धावस्था और सब प्रकार के दुःखों से युक्त हुआ जीवात्मा परमानंद को प्राप्त होता है।

वेदव्यास

हमारी पीढ़ी ऐसे समय में और ऐसे देश में पैदा हुई है जब कि प्रत्येक उदार एवं सच्चे हृदय के लिए यह बात आवश्यक हो गई है कि वह अपने लिए उस मार्ग को चुने, जो आहों, सिसकियों और जुदाई के बीच में गुज़रता है। यही मार्ग कर्म का मार्ग है।

विनायक दामोदर सावरकर

संसार में जन्मा मनुष्य, विद्वान और बलवान होने पर भी, मृत्यु को जीत सकता है, जीत सका है, और जीत सकेगा।

अश्वघोष

धरती की क़ैद में सीमित, हम मृत्यु की इच्छा का अनुभव करते हैं—जैसा कि प्लेटो के यहाँ होता है।

पीएत्रो चिताती

बालक समय आए बिना जन्म लेता है, मरता है और असमय में बोलता ही है। बिना समय के जवानी नहीं आती और बिना समय के बोया हुआ बीज भी नहीं उगता है।

वेदव्यास

जन्म का अंत है, जीवन का नहीं। और मृत्यु का प्रारंभ है, जीवन का नहीं। जीवन तो उन दोनों से पार है जो उसे नहीं जानते है, वे जीवित होकर भी जीवित नहीं है। और जो उसे जान लेते हैं वे मर कर भी नहीं मरते।

ओशो

मनुष्य को प्रतिक्षण और प्रतिपल स्वयं को नया कर लेना होता है। उसे अपने को ही जन्म देना होता है। स्वयं के सतत् जन्म की इस कला को जो नहीं जानते हैं, वे जानें कि वे कभी के ही मर चुके हैं।

ओशो

जन्म और मृत्यु दो भिन्न स्थितियाँ नहीं हैं, बल्कि एक ही स्थिति के दो अलग पहलू हैं।

महात्मा गांधी

गुणवान कुल में उत्पन्न होकर भी यदि कोई स्वयं गुणहीन है, तो वह पूजा का पात्र नहीं हो सकता, जैसे दुधारी गाय से उत्पन्न होने पर भी यदि गो वंध्या है तो उसका उपयोग कौन करेगा?

क्षेमेंद्र

जन्म और मृत्यु का मामला एकदम प्रकृति का नियम है।

शरत चंद्र चट्टोपाध्याय

पूर्व-जन्म में प्राणी जो कर्म करता है, वही उसके इस जन्म में फल देता रहता है।

बाणभट्ट

योगभ्रष्ट मनुष्य पुण्यवानों के लोकों को प्राप्त होकर और उनमें बहुत वर्षों तक वास करके शुद्ध आचरण वाले श्रीमान पुरुषों के घर में जन्म लेता है अथवा बुद्धिमान योगियों के कुल में जन्म लेता है।

वेदव्यास

कठोरता और बल मृत्यु के साथी हैं, कोमलता और लचीलापन अस्तित्व की ताजगी के प्रतीक हैं।

आन्द्रेई तारकोवस्की

समस्त वैदिक साहित्य इस बात का सबूत है कि ‘धर्मबोध’ का जन्म ‘काम’ और ‘भय’ से नहीं हुआ है, जैसा कि बाज़ारू किस्म के बुद्धिजीवी कहा करते हैं।

कुबेरनाथ राय

निद्रा के समान है मरण, और निद्रा से जागरण के समान है जन्म।

तिरुवल्लुवर

भेद का परिचय विद्या से नहीं है, उसका जन्म तो अविद्या की भूमि में होता है।

लक्ष्मीनारायण मिश्र

धर्म समाज द्वारा निर्मित है। धर्म ने नीतिशास्त्र को जन्म नहीं दिया है, वरन् इसके विपरीत नीति-शास्त्र ने धर्मं को जन्म दिया है।

भगवती चरण वर्मा

इच्छा रखनी ही है तो पुनः जन्म लेने की इच्छा रखनी चाहिए।

तिरुवल्लुवर

संतति-नियमन के कृत्रिम उपाय, धर्म तथा नीति के विरुद्ध और परिणाम में विनाश की ओर ले जानेवाले है।

महात्मा गांधी

माताएँ ही भविष्य के विषय में विचार कर सकती हैं क्योंकि वे अपनी संतानों में भविष्य को जन्म देती हैं।

मैक्सिम गोर्की

जन्म देने के चालीस दिन तक, नवजात बच्चे और जच्चा के लिए चालीस कब्रों के मुँह खुले हुए होते हैं। हर गुज़रते दिन के साथ एक-एक कब्र का मुँह बंद होता जाता है।

बानू मुश्ताक़

मूढ़ एक ही जन्म में सात जन्मों की नरक—वेदना का अधिकार अपने लिए सृजन कर लेने की क्षमता रखता है।

तिरुवल्लुवर

हे माता! जन्म के प्रथम प्रभात में ही तुम्हारी गोद में मैंने आँखें खोलीं और जीवन की अंतिम संध्या में, तुम्हारी गोद में सोकर ही आँखें बंद करूँगी।

नलिनीबाला देवी

मन पिछले जन्म के संबंध को भली भाँति जानता है।

कालिदास

किसका जन्म सराहनीय है? जिसका फिर जन्म हो। किसकी मृत्यु सराहनीय है? जिसकी फिर मृत्यु हो।

आदि शंकराचार्य

जिसने जन्म से लेकर आज तक धूर्तता नहीं सीखी है, उस व्यक्ति की बात तो अप्रामाणिक है और जो दूसरों को धोखा देने को एक विधा के रूप में सीखते हैं, वे पूर्ण सत्यवादी माने जाएँ।

कालिदास