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पराजय पर उद्धरण

जीवन-प्रसंगों में जय-पराजय

मनुष्य के प्रमुख मनोभावों में से एक है। यह किसी के हर्ष तो किसी के लिए विषाद का विषय है। यहाँ प्रस्तुत चयन में उन कविताओं का संकलन किया गया है, जिनमें ‘हार की जीत’ और ‘जीत की हार’ रेखांकित है।

हार मन की एक अवस्था है, कोई भी तब तक पराजित नहीं होता, जब तक हार को सच में स्वीकार नहीं किया जाता है।

ब्रूस ली

जिसका आत्म-बल पर विश्वास है, उसकी हार नहीं होती, क्योंकि आत्म-बल की पराकाष्ठा का अर्थ है मरने की तैयारी।

महात्मा गांधी

जिसकी प्रजा सदा कर के भार से पीड़ित हो नित्य उद्विग्न रहती है और नाना प्रकार के अनर्थ उसे सताते रहते हैं, वह राजा पराभव को प्राप्त होता है।

वेदव्यास

अधर्म से पराजित किया जाने वाला कोई भी पुरुष अपनी उस पराजय के लिए दुःखी नहीं होता।

वेदव्यास

मृत्यु मनुष्य की पराजय नहीं, पराजय है उसका मृत्यु से डरना।

रांगेय राघव

पराजित होने वाले कभी पूज्य नहीं होते।

यशपाल