
अभाव पर विजय पाना ही जीवन की सफलता है। उसे स्वीकार करके उसकी ग़ुलामी करना ही कायरपन है।

पृथ्वी स्वयं इस नए जीवन को जन्म दे रही है और सारे प्राणी इस आनेवाले जीवन की विजय चाह रहे हैं। अब चाहे रक्त की नदियाँ बहें या रक्त के सागर भर जाएँ, परंतु इस नई ज्योति को कोई बुझा नहीं सकता।

संसार में जितनी बड़ी-बड़ी जीतें हुई हैं, बड़े-बड़े आक्रमण हुए हैं, सबको महान बनाया है माताओं, बहिनों और पत्नियों के त्याग ने। किस युद्ध में कितने पुरुषों ने रक्त दिया—यह इतिहास में लिखा हुआ है, लेकिन उसके समीप में यह नहीं लिखा है कि कितनी स्त्रियों ने अपना सुहाग दान किया, कितनी माताओं ने कलेजा निकाल कर दिया, कितनी बहिनों ने सेवाएँ अर्पित की।

श्रृंगार जिनका प्रधान है, ऐसे काम के मित्रगण नारी को जीतने से जीत लिए जाते हैं।

जब कोई पराक्रमी अपने बल से अपने शत्रुओं को जीत लेता है तो उसका प्रणाम भी उसकी कीर्ति ही बढ़ाता है।

भीष्म समाप्त हो गए, द्रोण मारे गए, कर्ण का भी नाश हो गया। अब पांडवों को शल्य जीत लेगा ऐसी आशा है। हे राजन्! आशा बड़ी बलवती होती है।


जिसने अपने आपको जीत लिया, वह स्वयं अपना बंधु है। परंतु जिसने अपने आपको नहीं जीता, वह स्वयं अपने शत्रुत्व में शत्रुवत बर्तता है।

तुम्हारा हर काम और हर खेल मग़रिबी (पश्चिमी) है, तुम हारे तो क्या और जीते तो क्या! बल्कि दुःख तो ये है कि तुम उनकी नक़ल उतारने में कभी-कभी जीत भी जाते हो।

भारत सदा स्वाधीन रहा है। आज भी हम स्वाधीन हैं। पैंतीस करोड़ भारतवासी विश्व विजय करके रहेंगे। भारत युग-पुरुष श्रीराम, श्रीकृष्ण, बुद्धदेव, शंकरदेव आदि की पवित्र जन्मभूमि है और मानव मात्र की ज्ञान-दायिनी भी है।
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सभी राजा राजकुमारी को उसी प्रकार चाहते हैं, जिस प्रकार मल्ल लोग विजय-पताका को चाहा करते हैं।

आप जीवन से जीत नहीं सकते हैं।
