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कृष्ण कुमार

1951 | इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश

प्रसिद्ध लेखक व शिक्षाशास्त्री। पद्म श्री से सम्मानित।

प्रसिद्ध लेखक व शिक्षाशास्त्री। पद्म श्री से सम्मानित।

कृष्ण कुमार की संपूर्ण रचनाएँ

उद्धरण 169

नेता और अफ़सर और इनके चुने हुए विशेषज्ञ मिलकर तय करते है कि अब और कहाँ धरती का उत्पीड़न करना है ताकि कोई पैसा बनाए, कोई मौज करने आए, कोई कूड़ा बीनने, कोई सड़क बनाने।

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बच्चा एक अनकही कहानी होता है, उसकी कहानी हमारे दिए शब्दों में नहीं कही जा सकती। उसे अपने शब्द ढूँढ़ने का समय और स्थान चाहिए, ढूँढ़ने के लिए ज़रूरी आज़ादी और फ़ुर्सत चाहिए। हम इनमें से कोई शर्त पूरी नहीं करते। हम उन्हें अपने उपदेश सुनने से फ़ुर्सत नहीं देते, उन्हें सुनने की फ़ुर्सत हमें हो–यह संभव ही नहीं।

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पीड़ा जिस वजह से होती है वह एक दिन या एक वर्ष में नहीं बनती। देह हो या देश, उसकी पीड़ा पैदा होने और पकने में लंबा समय लेती है। पीड़ा एक सिलसिले का नाम है।

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चाय ऐसा सर्वगुणसंपन्न पेय है कि उसका गिलास हाथ में लेते ही क्लांत पथिक तरोताज़ा हो जाता है।

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बच्चों को भाषा पढ़ाने का भला क्या मतलब हो सकता है, सिवाय इस दृष्टि-विस्तार के, क्योंकि भाषा तो वे पहले से जानते हैं। हमें पढ़ना-लिखना सिखाने के आग्रह को भाषा सिखाने का मुख्य उद्देश्य यही समझना चाहिए।

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