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पुरुष पर उद्धरण

मनस्वी पुरुषों का कहना है कि विजय का मूल अच्छी मंत्रणा है।

वाल्मीकि
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वह तो स्त्री है, पुरुष है और नपुंसक ही है। सत् है, असत् है और सदसत् उभयरूप ही है। ब्रह्मज्ञानी पुरुष ही उसका साक्षात्कार करते हैं। उसका कभी क्षय नहीं होता, इसलिए वह अविनाशी परब्रह्म परमात्मा अक्षर कहलाता है। यह समझ लो।

वेदव्यास

दुष्ट पुरुषों का बल है हिंसा। राजाओं का बल है दंड देना। स्त्रियों का बल है सेवा और गुणवानों का बल है क्षमा।

वेदव्यास

संभवतः विवेकवादियों की आदर्श-भावना के कारण, इस शब्द में केवल स्त्री-पुरुष-संबंध के अर्थ का ही भाव होने लगा। किंतु काम में जिस व्यापक भावना का समावेश है, वह इन सब भावों को आवृत्त कर लेती है।

जयशंकर प्रसाद

कर्तव्यनिष्ठ पुरुष कभी निराश नहीं होता।

सरदार वल्लभ भाई पटेल

बंदी किए हुए पुरुष का सत्कार हो या निरादर, वह हमेशा लज्जित ही रहता है।

भास