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वाल्मीकि

वाल्मीकि की संपूर्ण रचनाएँ

उद्धरण 53

जैसे पके फलों को गिरने के अतिरिक्त कोई भय नहीं है, उसी प्रकार जिसने जन्म लिया है, उस मनुष्य को मृत्यु के अतिरिक्त कोई भय नहीं है।

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धर्म से अर्थ प्राप्त होता है। धर्म के सुख का उदय होता है। धर्म से ही मनुष्य सब कुछ पाता है। इस संसार में धर्म ही सार है।

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मित्र बनना सरल है, मैत्री—पालन दुष्कर है। चित्तों की अस्थिरता के कारण अल्प मतभेद होने पर भी मित्रता टूट जाती है।

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विपत्तिकाल में, पीड़ा के अवसरों पर, युद्धों में, स्वयंवर में, यज्ञ में अथवा विवाह के अवसर पर स्त्रियों का दिखाई देना उनके लिए दोष की बात नहीं है।

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धर्म ही लोक में सर्वश्रेष्ठ है। धर्म में सत्य प्रतिष्ठित है।

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