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भट्टनारायण

संस्कृत के सुप्रसिद्ध नाटककार। 'वेणीसंहार' कृति के लिए उल्लेखनीय।

संस्कृत के सुप्रसिद्ध नाटककार। 'वेणीसंहार' कृति के लिए उल्लेखनीय।

भट्टनारायण की संपूर्ण रचनाएँ

उद्धरण 11

ओह, स्त्रियों का कैसा भोलापन!

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यदि युद्ध को छोड़ने पर मृत्यु का भय हो तब तो अन्यत्र भाग जाना उचित है। किंतु प्राणी की मृत्यु अवश्य ही होती है। तो फिर यश को व्यर्थ क्यों कलंकित कर रहे हो?

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तेजस्वी पुरुष सशस्त्र भुजा रूपी डोंगी से शत्रु द्वारा मारे गए कुटुंब के दुःखरूपी सागर को पार करता है।

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भीष्म समाप्त हो गए, द्रोण मारे गए, कर्ण का भी नाश हो गया। अब पांडवों को शल्य जीत लेगा ऐसी आशा है। हे राजन्! आशा बड़ी बलवती होती है।

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मनुष्य दीनतारहित होकर और रोगरहित होकर पुरुष की पूर्ण आयु तक जिए।

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