प्रेमचंद की संपूर्ण रचनाएँ
पत्र 1
कहानी 26
आलोचनात्मक लेखन 3
उद्धरण 174

प्रेम जैसी निर्मम वस्तु क्या भय से बाँध कर रखी जा सकती है? वह तो पूरा विश्वास चाहती है, पूरी स्वाधीनता चाहती है, पूरी ज़िम्मेदारी चाहती है। उसके पल्लवित होने की शक्ति उसके अंदर है। उसे प्रकाश और क्षेत्र मिलना चाहिए। वह कोई दीवार नहीं है, जिस पर ऊपर से ईंटें रखी जाती है उसमें तो प्राण है, फैलने की असीम शक्ति है।
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