दिल में जो ज्योति होनी चाहिए उसको प्रकट करने की कोशिश हमें करनी है। हमारे दिल में राम विराजमान हैं और वहाँ भी युद्ध चलता है राम और रावण के बीच में। अगर हृदय में, उसके बाहर नहीं, राम पर रावण की जीत होती है तो उसका मतलब है कि हृदय में ज्योति नहीं है, अँधेरा है। अगर राम की रावण पर जय होती है और रावण बेकार हो जाता है या परास्त हो जाता है, तब हमारे भीतर तो ज्योति है ही, बाहर भी दिया-बत्ती जलाने का हमको हक़ हो जाता है।
जन्म का अंत है, जीवन का नहीं। और मृत्यु का प्रारंभ है, जीवन का नहीं। जीवन तो उन दोनों से पार है। जो उसे नहीं जानते हैं, वे जीवित होकर भी जीवित नहीं हैं। और जो उसे जान लेते हैं, वे मर कर भी नहीं मरते।
जो प्रकाश स्वरूप है; अगर उसका प्रकाश न हो तो वही तो उसकी बाधा है—प्रकाश ही उसकी मुक्ति है।
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जन्म का अंत है, जीवन का नहीं। और मृत्यु का प्रारंभ है, जीवन का नहीं। जीवन तो उन दोनों से पार है जो उसे नहीं जानते है, वे जीवित होकर भी जीवित नहीं है। और जो उसे जान लेते हैं वे मर कर भी नहीं मरते।
स्वयं को खोकर कुछ करो, तो उससे ही स्वयं को पाने का मार्ग मिल जाता है।
असीम की ओर ज्ञानदृष्टि मोड़ने पर ही हम सत्य को देखते हैं।
साधु के पास उसे कुछ देने नहीं, वरन् उससे कुछ लेने जाना चाहिए। जिनके पास भीतर कुछ है, वे ही बाहर का सब कुछ छोड़ने में समर्थ होते है।
उन्नति का मूल आत्मसमर्पण है, उन्नति का अर्थ है आत्मज्ञान।