
किंवदंती के अनुसार जब ईसा पैदा हुए तो आकाश में सूर्य नाच उठा। पुराने झाड़-झंखाड़ सीधे हो गए और उनमें कोपलें निकल आईं। वे एक बार फिर फूलों से लद गए और उनसे निकलने वाली सुगंध चारों ओर फैल गई। प्रति नए वर्ष में जब हमारे अंतर में शिशु ईसा जन्म लेता है, उस समय हमारे भीतर होने वाले परिवर्तनों के ये प्रतीक हैं। बड़े दिनों की धूप से अभिसिक्त हमारे स्वभाव, जो कदाचित् बहुत दिनों से कोंपलविहीन थे, नया स्नेह, नई दया, नई कृपा और नई करुणा प्रगट करते हैं। जिस प्रकार ईसा का जन्म ईसाइयत का प्रारंभ था, उसी प्रकार बड़े दिन का स्वार्थहीन आनंद उस भावना का प्रारंभ है, जो आने वाले वर्ष को संचालित करेगी।

पिता स्त्री की कुमारावस्था में, पति युवावस्था में तथा पुत्र वृद्धावस्था में रक्षा करता है। स्त्री को स्वतंत्र नहीं रहना चाहिए।

सहस्रों माता-पिता और सैकड़ों पुत्र व पत्नियाँ युग-युग में हुए। सदैव के लिए वे किसके हुए और आप किसके हैं?

एक साधारण बेटी के संग यदा-कदा पहचान को बदल देने से बेटे का निर्माण नहीं हो जाता।

देशभक्त, जननी का सच्चा पुत्र है।

अगर मैं जानती कि मेरा बेटा एक दिन इस गणतंत्र का राष्ट्रपति बनेगा तो मैंने इसे स्कूल ज़रूर भेजा होता।

नारियों का सम्मान स्वयं उनके कारण नहीं होता, बल्कि वह उनकी संतान और पुत्र प्रसव पर निर्भर करता है।

जैसे-जैसे हम ज्ञान पाते हैं, हम अपने पिताओं को मूर्ख समझते हैं। निस्संदेह हमारे अधिक बुद्धिमान पुत्र हमें भी ऐसा ही समझेंगे।

संसार की कोई भी नारी ऐसे पुत्र को जन्म न दे, अमर्षशून्य, उत्साहहीन, बल और पराक्रम से रहित तथा शत्रुओं का आनंद बढ़ाने वाला हो।

यह पुत्र-स्नेह धनी तथा निर्धन के लिए समान रूप से सर्वस्व धन है। यह चंदन तथा ख़श से भिन्न हृदय का शीतल लेप है।

जो माता-पिता की आज्ञा मानता है, उनका हित चाहता है, उनके अनुकूल चलता है, तथा माता-पिता के प्रति पुत्रोचित व्यवहार करता है, वास्तव में वही पुत्र है।

जो पुत्र इस लोक में दुर्गम संकट से पार लगाए अथवा मृत्यु के पश्चात् परलोक में उद्धार करे... सब प्रकार पिता को सार दे, उसे ही विद्वानों ने वास्तव में 'पुत्र' कहा है।

गुणवानों की गणना के आरंभ में खडिया जिसका नाम गौरवपूर्वक नहीं लिखती, ऐसे पुत्र से यदि माता पुत्रवती बनती है, तो वंध्या कैसी होगी?

परिवर्तन—जीवन का सबलतम पुत्र।

राजन्! श्रुति है कि दर्प अधर्म के अंश से उत्पन्न संपत्ति का पुत्र है। उस दर्प ने बहुत से देवताओं और असुरों को नष्ट कर दिया है।

शेरनी का शिकार बाज़ को क्या मालूम! बाँझ को पुत्र के प्रति वात्सल्य का क्या ज्ञान !