
तुम्हारे इन अट्टहासों के कारण हज़ारों आँखें आँसुओं से भरी हुई हैं।

जब तक मेरे पास दो कोटों के होते हुए कोई व्यक्ति बिना कोट के रहेगा तब तक मैं भी इस संसार में निरंतर होते रहने वाले एक पाप का भागीदार बना रहूँगा।

जगत् में प्रायः धनवानों में खाने और पचाने की शक्ति नहीं रहती है और दरिद्रों के पेट में काठ भी पच जाता है।

जिसके पास भगवद्-भक्ति, भगवद्-प्रेम है—वही इस संसार में धनी है। ऐसे व्यक्ति के समक्ष महाराजाधिराज भी दीन भिक्षुक के समान है।

जब मैं गहनों से लदे हुए उन अमीर-उमरावों को भारत के लाखों ग़रीब आदमियों से मिलाता हूँ तो मुझे लगता है कि मैं इन अमीरों से कहूँ", "जब तक आप अपने आप ये ज़ेवरात नहीं उतार देते और उन्हें ग़रीबों की धरोहर मान कर नहीं चलते तब तक भारत का कल्याण नहीं होता।"
