लालच पर दोहे
लालच किसी पदार्थ, विशेषतः
धन आदि प्राप्त करने की तीव्र इच्छा है जिसमें एक लोलुपता की भावना अंतर्निहित होती है। इस चयन में लालच विषय पर अभिव्यक्त कविताओं को शामिल किया गया है।
माया मुई न मन मुवा, मरि-मरि गया सरीर।
आसा त्रिष्णाँ नाँ मुई, यौं कहै दास कबीर॥
कबीर कहते हैं कि प्राणी की न माया मरती है, न मन मरता है, यह शरीर ही बार-बार मरता है। अर्थात् अनेक योनियों में भटकने के बावजूद प्राणी की आशा और तृष्णा नहीं मरती वह हमेशा बनी ही रहती है।
मन की ममता ना गई, नीच न छोड़े चाल।
रुका सुखा जो मिले, ले झोली में डाल॥
असुर भूत अरू प्रेत पुनि, राक्षस जिनि कौ नांव।
त्यौं सुन्दर प्रभु पेट यह, करै खांव ही खांव॥