शिष्टाचार के कारण अपनी आत्मा को भी तिनके के समान लघु बनाना चाहिए, अपना आसन छोड़कर अतिथि को देना चाहिए, आनंद के अश्रुओं से जल देना चाहिए और मधुर वचनों से कुशलक्षेम पूछना चाहिए।
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शत्रुओं के द्वारा जो सच्चे न हों ऐसे छोटे छोटे दोषों का आरोपण सज्जनों की निर्दोषता को सूचित करता है क्योंकि यदि सत्य दोष होगा तो झूठा दोष आरोपण करने के लिए कोई उद्योग नहीं करेगा।
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इस जगत में कौन अपने कर्म का फल नहीं भोगता है?
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जिस धनी पुरुष का जन्म याचक जन की इच्छा को पूर्ण करने के लिए नहीं है, उस पुरुष से ही यह पृथ्वी अत्यंत भार वाली है, न कि पेड़ों या पर्वतों या समुद्रों से।
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देवता प्रसन्न होने पर और कुछ तो नहीं देते, सद्बुद्धि ही प्रदान करते हैं।
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