गृहिणी का सद्गुण ही गृहस्थ की मांगलिक शोभा है और सुपुत्र उसका आभूषण।
गृहिणी सद्गुण संपन्न है तो गृहस्थ को किस वस्तु का अभाव? और यदि वैसी नहीं है तो उसके पास है ही क्या?
पत्नी के लिए लोक में सबसे बढ़कर यही सनातन कर्त्तव्य है कि वह अपने प्राणों को भी न्योछावर करके पति की भलाई करे।
यदि कोई पति प्रेम के बिना केवल प्रिय वचन बोलकर ही स्त्रियों को मनाता है तो उसकी बातें उनके हृदय में उसी प्रकार नहीं जँचती हैं, जैसे कृत्रिम रंग से रंगी मणि उसके पारखी के हृदय को।
मेरे विचार है कि पति-पत्नी में से एक को रोमांटिक होना चाहिए और दूसरे को व्यावहारिक। दोनों रोमांटिक होंगे तो दो जून की रोटी भी न जुटा पाएँगे और दोनों व्यावहारिक होंगे, तो उनका जीवन बड़ा नीरस और उबाऊ हो जाएगा।
पतिव्रता स्त्रियाँ अपने पति की इच्छा के विरुद्ध कोई कार्य नहीं करती हैं।
पति को जो वास्तव में धर्म समझकर, परलोक की वस्तु समझकर ग्रहण कर सकी है, उसके पैरों की बेड़ी चाहे तोड़ दी और चाहे बंधी रहने दी, उसके सतीत्व की परीक्षा अपने-आप हो ही गई, समझ लो।
स्त्रियों को पतियों के मित्रों से प्राप्त हुआ उनका समाचार प्रत्यक्ष भेंट से कुछ ही कम होता है।
स्त्रियों के चित्त साथ में रहने के कारण पति के सदृश ही हो जाते हैं।
स्वामी पसंद-नापसंद की चीज़ नहीं है। उसे बिना कुछ विचारे मान लेना होता है।
जिस कुल में पति पत्नी से और पत्नी पति से संतुष्ट रहती है, वहाँ ध्रुव कल्याण वास करता हैं।