
यदि कोई पति प्रेम के बिना केवल प्रिय वचन बोलकर ही स्त्रियों को मनाता है तो उसकी बातें उनके हृदय में उसी प्रकार नहीं जँचती हैं, जैसे कृत्रिम रंग से रंगी मणि उसके पारखी के हृदय को।

पतिव्रता स्त्रियाँ अपने पति की इच्छा के विरुद्ध कोई कार्य नहीं करती हैं।

पति को जो वास्तव में धर्म समझकर, परलोक की वस्तु समझकर ग्रहण कर सकी है, उसके पैरों की बेड़ी चाहे तोड़ दी और चाहे बंधी रहने दी, उसके सतीत्व की परीक्षा अपने-आप हो ही गई, समझ लो।

स्त्रियों के चित्त साथ में रहने के कारण पति के सदृश ही हो जाते हैं।

स्वामी पसंद-नापसंद की चीज़ नहीं है। उसे बिना कुछ विचारे मान लेना होता है।
