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अभिमान पर उद्धरण

वफ़ा ही वह जादू है जो रूप के गर्व का सिर नीचा कर सकता है।

प्रेमचंद

धन-संपत्ति मिथ्या अभिमान से उन्मत्त कर देती है।

बाणभट्ट
  • संबंधित विषय : धन

रूप, गौरव का कारण होता है और कुल। नीच हो या महान उसका कर्म ही उसकी शोभा बढ़ाता है।

भास

हमारी जन्मभूमि, धर्मभूमि, गौरवभूमि! तेरे लिए हमारे पूर्वजों ने मृत्यु का वरण किया। हे मातृभूमि! हम भविष्य के लिए तुझे अपना मस्तक, हृदय और हाथ अर्पित करते हैं।

जोसेफ रुडयार्ड किपलिंग

जो परस्पर भेद-भाव रखते हैं, वे कभी धर्म का आचरण नहीं करते। वे सुख भी नहीं पाते। उन्हें गौरव नहीं प्राप्त होता तथा उन्हें शांति की वार्ता भी नहीं सुहाती।

वेदव्यास

क्रोध, हर्ष, अभिमान, लज्जा, उद्दंडता, स्वयं को बहुत अधिक मानना—ये सब जिस मनुष्य को उसके लक्ष्य से नहीं हटाते, उसी को पंडित कहा जाता है।

वेदव्यास

हम दुर्बल मनुष्य राग-द्वेष से ऊपर रहकर कर्म करना नहीं जानते, अपने अभिमान के आगे जाति के अभिमान को तुच्छ समझ बैठते हैं।

हरिकृष्ण प्रेमी

गुणवानों की गणना के आरंभ में खडिया जिसका नाम गौरवपूर्वक नहीं लिखती, ऐसे पुत्र से यदि माता पुत्रवती बनती है, तो वंध्या कैसी होगी?

विष्णु शर्मा

हे भगवान! तेरी भक्ति के मार्ग में सब समान है। इस लोक परलोक में तेरी ही सेवा सर्वश्रेष्ठ है। तू हमारे अभिमान को छीन ले, और नम्रता को दे। तू अपनी कृपा से यह लेन-देन कर।

उमर ख़य्याम