पुत्र पर

अमर : माँ, दीवाली के अवसर पर मेरे लिए कौन-सा कपड़ा ख़रीदोगी।

माँ : तुम्हें क्या चाहिए, मुझे बताना बेटे। आज शाम को हम लोग बाज़ार चलेंगे।

अमर : मैं भी बाज़ार चलूँगा माँ। मैं अपनी पसंद के कपड़े लूँगा।

अनीता : मैं भी चलूँगी।

पिता : हाँ बेटे, तुम दोनों तैयार हो जाना।

(चारों बाज़ार जाते हैं। कपड़े की दुकान पर पहुँचते हैं।)

दुकानदार : आइए विनोद भाई, नमस्कार।

पिता : नमस्ते-नमस्ते! कैसे हैं आप?

दुकानदार : आप सभी की शुभकामना से ठीक हूँ। आइए बैठिए।

माँ : बच्चों के लिए कपड़े चाहिए।

दुकानदार : अभी दिखाता हूँ बहन जी! वीरू, साहब के लिए चाय-पानी ले आओ।

माँ : नहीं-नहीं चाय नहीं, सिर्फ़ पानी लाना।

पिता : बेटी के लिए सूट का कपड़ा दिखाइए और पैंट-शर्ट के कपड़े भी! अमर बेटे तू अपनी पसंद के कपड़े देखना।

दुकानदार : नए पैंट-पीस भी आए हैं। वीरू अच्छे कपड़े निकाल लाओ।

अमर : अनीता, तुम अपने लिए कपड़ा पसंद कर लो।

दुकानदार : बेटे, यह पैंट का कपड़ा देखो। यह बहुत अच्छा है।

अमर : नहीं, यह मुझे पसंद नहीं है। दूसरा कपड़ा दिखाइए।

अनीता : माँ, यह सूट बहुत अच्छा है।

माँ : हाँ, यह रंग अच्छा है, लेकिन कपड़ा अच्छा नहीं है।

दुकानदार : यह लीजिए,  बढ़िया कपड़े में, बिलकुल नया-नया आया है।

माँ : इसका कपड़ा ठीक है। अमर तुम्हें यह कपड़ा पसंद है?

अमर : हाँ, अच्छा है माँ!

माँ : तेरी पसंद अच्छी होती है, बेटे।

अनीता : और मेरी पसंद माँ?

माँ : तेरी पसंद भी।

पिता : दोनों कपड़े पैक कर दी दीजिए।

दुकानदार : वीरू, ये कपड़े पैक कर दो। यह लीजिए आपका बिल। 

पिता : धन्यवाद!

अज्ञात

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