दीनदयाल उपाध्याय की संपूर्ण रचनाएँ
उद्धरण 2

महापुरुष तो जातीय साधना के विग्रह स्वरूप है। तो समाज में वर्षों से होने वाली विचार क्रांति के दृष्ट फल होते हैं। उनकी अलौकिक शक्ति और ऐश्वर्य, सर्वतोमुखी प्रतिभा, अखंड कर्ममय जीवन तथा सर्वव्यापी प्रभाव को देखकर हमारी आँखें चौंधिया जाती हैं कि हम उस महापुरुष को उत्पन्न करने वाली जीवनधारा को बिल्कुल ही भूल जाते हैं।