Font by Mehr Nastaliq Web

राष्ट्र पर उद्धरण

सबको अपने किए का फल भोगना पड़ता है—व्यक्ति को भी, जाति को भी, देश को भी।

हजारीप्रसाद द्विवेदी

यदि एक पुरुष को मार देने से कुटुंब के शेष व्यक्तियों का कष्ट दूर हो जाए और एक कुटुंब का नाश कर देने से सारे राष्ट्र में शांति छा जाए तो वैसा करना सदाचार का नाशक नहीं है।

वेदव्यास

भीड़ की सतही कार्यवाहियों की अपेक्षा, कला और साहित्य राष्ट्र की आत्मा को महान अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं। वे हमें शांति और निरभ्र विचार के राज्य में ले जाते हैं, जो क्षणिक भावनाओं और पूर्वाग्रह से प्रभावित नहीं होते।

जवाहरलाल नेहरू

तंग मज़हबों में सीमित हो जाओ। राष्ट्रीयता को स्थान दो। भ्रातृत्व, मानवता तथा आध्यात्मिकता को स्थान दो। द्वैत-भावना की मलिन दृष्टि को त्याग दो- तुम भी रहो, मैं भी रहूँ।

किशनचंद 'बेवस'

अभावों में मरने की अपेक्षा संघर्ष करते हुए मरना अधिक अच्छा है, दुःखपूर्ण और निराश जीवन की अपेक्षा मर जाना बेहतर है। मृत्यु होने पर नया जन्म मिलेगा। और वे व्यक्ति अथवा राष्ट्र जो मरना नहीं जानते, यह भी नहीं जानते कि जिया कैसे जाता है।

जवाहरलाल नेहरू

सभी के लिए एक क़ानून है अर्थात् वह क़ानून जो सभी क़ानूनों का शासक है, हमारे विधाता का क़ानून, मानवता, न्याय, समता का क़ानून, प्रकृति का क़ानून, राष्ट्रों का कानून।

एडमंड बर्क

अपने मुँह से अपनी तारीफ़ करना हमेशा ख़तरनाक-चीज़ होती है। राष्ट्र के लिए भी वह उतनी ख़तरनाक है, क्योंकि वह उसे आत्मसंतुष्ट और निष्क्रिय बना देती है, और दुनिया उसे पीछे छोड़कर आगे बढ़ जाती है।

जवाहरलाल नेहरू

सही भारतीयता क्षुद्र, संकीर्ण, राष्ट्रीयता के दंभ से बिल्कुल अलग तथ्य है।

कुबेरनाथ राय

लोकतंत्र लोक-कर्त्तव्य के निर्वाह का एक साधन मात्र है। साधन की प्रभाव क्षमता लोकजीवन में राष्ट्र के प्रति एकात्मकता, अपने उत्तरदायित्व का भान तथा अनुशासन पर निर्भर है।

दीनदयाल उपाध्याय

राष्ट्र विप्लव होते-होते ईरान, असीरिया और मित्र वाले तो अपने प्राचीन साहित्य आदि के उत्तराधिकारी रहे परंतु भारतवर्ष के आर्य लोगों ने वैसी ही अनेक आपत्तियाँ सहने पर भी अपनी प्राचीन सभ्यता के गौरव रूपी अपने प्राचीन साहित्य को बहुत कुछ बचा रखा और विद्या के संबंध में सारे भूमंडल के लोग थोड़े-बहुत उनके ऋृणी हैं।

गौरीशंकर हीराचंद ओझा

ईश्वरीय प्रकाश किसी एक ही राष्ट्र या जाति की संपत्ति नहीं है।

महात्मा गांधी

राष्ट्र की कठिनतम परीक्षा अब है। यह राष्ट्र की सैनिक तैयारी की परीक्षा लेता है। यह इसकी अर्थ-नीति की उत्पादकता की परीक्षा लेता है। यह इसके जन-समाज के साहस की परीक्षा लेता है। स्वतंत्रता की इसकी संस्थाओं की परीक्षा भी यह लेता है।

रिचर्ड निक्सन

किसी भी राष्ट्र की बहुत थोड़ी पुस्तकें पठनीय होती हैं।

जॉर्ज बर्नार्ड शॉ

इस जाति-बहिष्कार के खड्ग ने एकात्म—एकजीव—अखंड राष्ट्रशरीर के टुकड़े-टुकड़े करके उसे हज़ारों खंडों में विभक्त कर दिया है।

विनायक दामोदर सावरकर

केवल बल का प्रयोग तो अस्थायी होता है। यह क्षणभर को हरा सकता है किंतु इससे पुनः हराने की आवश्यकता समाप्त नहीं हो जाती और वह राष्ट्र, जिसे निरंतर जीतते ही रहना पड़े, शासित नहीं है।

एडमंड बर्क

अंतरराष्ट्रीयता राष्ट्रों का राष्ट्रवाद है।

एच.जी. वेल्स

आज भारतीय ज्ञान केवल भारत राष्ट्र के पुनरुत्थान के लिए अपरिहार्य नहीं है अपितु मानव जाति के पुनर्शिक्षण शक्षण के लिए भी।

सर्वेपल्लि राधाकृष्णन

हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

रजिस्टर कीजिए