साहस पर उद्धरण
साहस वह मानसिक बल या
गुण है, जिसके द्वारा मनुष्य यथेष्ट ऊर्जा या साधन के अभाव में भी भारी कार्य कर बैठता है अथवा विपत्तियों या कठिनाइयों का मुक़ाबला करने में सक्षम होता है। इस चयन में साहस को विषय बनाती कविताओं को शामिल किया गया है।

ग़लतियाँ हमेशा माफ़ की जा सकती हैं, अगर किसी में उन्हें स्वीकार करने का साहस हो।

यथार्थ प्यार करने में स्त्रियों की शक्ति और साहस पुरुष से कहीं अधिक है। वे कुछ नहीं मानतीं। पुरुष जहाँ भय विह्वल हो जाते हैं, स्त्रियाँ वहाँ स्पष्ट बातें उच्च स्वर से घोषित करने में दुविधा नहीं करतीं।

समाज तुम्हें जो छवि देता है उसके बजाय, अपनी ख़ुद की छवि गढ़ने का निर्णय लेने के लिए बहुत साहस और स्वतंत्रता की ज़रूरत है, लेकिन जैसे-जैसे तुम आगे बढ़ते जाते हो, यह आसान हो जाता है।

केवल वही पुस्तक लिखने योग्य है जिसे लिखने का हममें साहस नहीं है। जिस पुस्तक को हम लिख रहे होते हैं, वह हमें आहत करती है, हमें कँपाती है, शर्मिंदा करती है, ख़ून निकालती है।

करुणा, करुणा, करुणा। मैं नए साल के लिए प्रार्थना करना चाहती हूँ, संकल्प नहीं। मैं साहस के लिए प्रार्थना कर रही हूँ।

जीवन अगर साहस से भरी यात्रा न हुआ, तो कुछ न हुआ।

साहस और धृष्टता से कहे गए मिथ्या विचार से भी बहुत लाभ होता है।

दरअसल मैं सामान्य, औसत, आदर्श नहीं बनना चाहती हूँ। मैं बस अपने जीवन को और पूर्णता से जीने, और अधिक आनंद लेने और अधिक अनुभव करने के लिए ज़्यादा ताक़त और साहस प्राप्त करना चाहती हूँ। मैं और भी मौलिक और स्वच्छंद विलक्षणताएँ विकसित करना चाहती हूँ।

जो समाज इन्हें वीरता, साहस और त्याग भरें मातृत्व के साथ स्वीकार नहीं कर सकता, क्या वह इनकी कायरता और दैन्य भरी मूर्ति को ऊँचे सिंहासन पर प्रतिष्ठित कर पूजेगा?


बढ़ने और वह होने के लिए, जो तुम हो, साहस की ज़रूरत होती है।


हमने बेटियों का पालन-पोषण बेटों की तरह करना शुरू कर दिया है, लेकिन बहुत कम लोगों में इतना साहस है कि वे अपने बेटों को बेटियों की तरह बड़ा होने दें।

जिनके हृदय में उत्साह होता है, वे पुरुष कठिन से कठिन कार्य आ पड़ने पर हिम्मत नहीं हारते।

हमें विश्वास करना चाहिए कि न्याय शक्ति का जनक है और उस विश्वास के आधार पर, जैसा हम समझते हैं, हमें अंत तक अपना कर्त्तव्य पालन करने का साहस करना चाहिए।

इस ज़िंदगी को एकदम उतार कर फेंक दें, इसका साहस नहीं, और नई ज़िंदगी बुन सकें, इसके लिए न संकल्प है न यत्न। केवल शब्द हैं, रो लें या हँस लें या कह कर चुप हो जाएँ।

महत्त्वाकांक्षा की प्रेरणा मनुष्य को साहस, लगन और दृढ़ता प्रदान करती है, जिन गुणों के अभाव में मानव निर्जीव हो जाता है।

दार्शनिक के लिए सत्य कहने का साहस प्रथम अर्हता है।

हे पुत्र! धर्म को आगे रखकर या तो पराक्रम प्रकट कर अथवा उस गति को प्राप्त हो जा, जो समस्त प्राणियों के लिए निश्चित है, अन्यथा किसलिए जी रहा है।

परिस्थितियाँ ही मनुष्य में साहस का संचार करती हैं।

हे भगवान! 'मैं आपका सेवक हूँ' यह कैसे कह सकता हूँ? 'मैं आपकी शरण हूँ' यह कहने का भी मेरा भाग्य कहाँ! 'मैं दीन और दुर्दशाग्रस्त हूँ' यह आप दयानिधि से कहने की क्या आवश्यकता? 'आपके नाम स्मरण का मुझे आसरा है, यह भी कहने का मेरा समय नहीं। मैं पापी इस स्थिति में किस साहस पर दया की याचना करूँ? 'अजामिल आदि पापियों की भाँति मेरी भी रक्षा कीजिए' यह कहने का भी क्या मेरा भाग्य है? हे दयालु! आपकी दृष्टि को पाने के लिए मैं क्या निवेदन करूँ, यह तनिक आप ही बता दीजिए।

तुम भले हो जब तुम अपने लक्ष्य की ओर दृढ़ता और साहसपूर्वक पैर बढ़ाते हो। लेकिन तब भी तुम बुरे नहीं हो जब तुम उस तरफ लँगड़ाते-लँगड़ाते जाते हो। लँगड़ाते हुए जाने वाले लोग भी पीछे की तरफ़ नहीं जाते।


पुरुषार्थ के बल पर जो लौकिकता अर्जित हुई रहती है, एक सीमा के बाद उसी में से वे कुतर्क जन्म लेने लगते हैं जो पुरुषार्थ को नगण्य करने लगते हैं।

रचनात्मकता के लिए साहस आवश्यक है।

यह देशांतर-भ्रमण बहुत बड़े साहस का काम है। इसमें सुख का कदाचित् ही दर्शन होता है। हमारे सभी विशिष्ट गुणों की कसोटी यात्रा की इन विपत्तियों में हो जाती है। अनेक प्रकार की परिस्थितियों और परिचयों के झमेले में अपने को प्रगल्भ बनाना पड़ता है। कष्ट भोगने की तो अंतिम सीमा हो जाती है। धन के लोभी बनियों के पास खाने-पीने की चीज़ें ख़रीदने के लिए इसी समय अधिकाधिक जाने का अवसर आता है। अधिक क्या कहा जाए, यदि देश भ्रमण के बाद सकुशल लौट आने का सुअवसर आ जाए तो उसे दूसरा जन्म समझना चाहिए। मैं तो अब इस देशांतर जाने की इच्छा को नमस्कार करता हूँ।