अतीत पर उद्धरण
अतीत का अभिप्राय है
भूतकाल, व्यतीत, बीत चुका समय, जिसका अस्तित्व या सत्ता समाप्त हो चुकी। प्रस्तुत चयन में अतीत के विभिन्न रंगों, धूप-छाया का प्रसंग लेती कविताओं का संकलन किया गया है।
अतीत के बिना कोई कला नहीं होती है, किंतु वर्तमान के बिना भी कोई कला जीवित नहीं रहती है, यह भी ठीक है।
जीवन से विरहित होकर भूतकाल की उपासना करना केवल बुद्धि का कुतूहल है।
आप कभी भी अतीत के द्वारा भविष्य की योजना नहीं बना सकते।
जिस प्रकार अतीत नष्ट होता है उसी प्रकार भविष्य निर्मित होता है।
मुझे अपने अतीत से प्यार है। मुझे अपने वर्तमान से प्यार है। जो मेरे पास था उसमें मुझे शर्म नहीं थी, और मैं इस बात से दुखी नहीं हूँ कि अब वह मेरे पास नहीं है।
हम प्राचीन देशवासियों के पास अपना अतीत है—हम अतीत के प्रति आसक्त रहते हैं। उन, अमेरिकियों का एक सपना है: वे भविष्य के वादे के बारे में उदासी महसूस करते हैं।
सवाल सिर्फ़ अतीत को मिटाने का ही है।
प्रत्येक क्षण के पीछे पूरे अतीत का भार है।
आपको भान होगा कि भविष्य के प्रति हमारा भय ही हमारी अतीत से मुक्ति पाने में बाधा है।
हम अबाध रूप से, कालक्रम से नहीं बढ़ते हैं। हम कभी-कभी असमान रूप से एक पहलू में आगे बढ़ते हैं, दूसरे में नहीं। हम थोड़ा-थोड़ा करके बढ़ते हैं। हम तुलनात्मक रूप से आगे बढ़ते हैं। हम एक क्षेत्र में परिपक्व हैं, दूसरे में बचकाने। अतीत, वर्तमान और भविष्य मिलकर हमें पीछे धकेलते हैं, आगे बढ़ाते हैं या हमें वर्तमान में स्थिर कर देते हैं। हम परतों, कोशिकाओं, ज्योति पुंजों से मिलकर बने हैं।
जब हम अतीत के बारे में सोचते हैं, तब हम सुंदर चीज़ों को चुनते हैं। हम विश्वास करना चाहते हैं कि सब कुछ ऐसा ही था।
अतीत आता है—भविष्य, अतीत, भविष्य। यह हमेशा अभी है। यह कभी अभी नहीं है।
मैंने ख़ुद को एक कालातीत टैक्सी में अनंतकाल से गुज़रते हुए देखा।
अतीत कभी मरता नहीं है। वह बीतता भी नहीं है।
जब अतीत मर जाता है तो शोक होता है, लेकिन जब भविष्य मर जाता है तो हमारी कल्पनाएँ उसे आगे बढ़ाने के लिए मजबूर हो जाती हैं।
भूतकाल हमारा है, हम भूतकाल के नहीं हैं। हम वर्तमान के हैं और भविष्य को बनाने वाले हैं, भविष्य के नहीं।
हृदय के लिए अतीत एक मुक्ति-लोक है जहाँ वह अनेक प्रकार के बंधनों से छूटा रहता है और अपने शुद्ध रूप में विचरता है।
अतीत सुखों के लिए सोच क्यों, अनागत भविष्य के लिए भय क्यों, और वर्तमान को मैं अपने अनुकूल बना ही लूँगा, फिर चिंता किस बात की?
वर्तमान हमें अंधा बनाए रहता है, अतीत बीच-बीच में हमारी आँखें खोलता रहता है।
कुलीनता पूर्वजन्म के कर्मों का फल है, चारित्र्य इस जन्म के कर्मों का प्रकाशक है।
जो रात बीत गई है, वह फिर नहीं लौटती, जैसे जल से भरे हुए समुद्र की ओर यमुना जाती ही है, उधर से लौटती नहीं।
स्मृति अतीत-विषयक होती है। मति भविष्य-विषयक होती है। बुद्धि वर्तमान विषयक होती है। प्रज्ञा त्रिकाल-विषयक होती है। नवनवोन्मेषशालिनी प्रज्ञा को प्रतिभा कहते हैं।
हमारा भविष्य जैसे कल्पना के परे दूर तक फैला हुआ है, हमारा अतीत भी उसी प्रकार स्मृति के पार तक विस्तृत है।
आदमी को पूरी निर्ममता से अपने अतीत में किए कार्यों की चीर-फाड़ करनी चाहिए, ताकि वह इतना साहस जुटा सके कि हर दिन थोड़ा-सा जी सके।
भूतकाल के साँचों को तोड़ डालो परंतु उनकी स्वाभाविक शक्ति और मूल भावना को सुरक्षित रखो, अन्यथा तुम्हारा कोई भविष्य ही नहीं रह जाएगा।
पूर्व और नूतन का जहाँ मेल होता है, वहीं उच्च संस्कृति की उपजाऊ भूमि है।
कल जो पंडितों के लिए अगम्य था, आज उसमें आधुनिक बालक के लिए भी नया कुछ नहीं है।
प्रयोजन के अतीत पदार्थ का ही नाम सौंदर्य है, प्रेम है, भक्ति है, मनुष्यता है।
पुरानी अवधारणओं को मानने के कारण हम पुराने हैं; लेकिन जब पुरानी अवधारणाएँ हमसे जुड़ी हों तो इसका मतलब यह है कि ये चीज़ें हमारे अंदर हैं, फिर भी हम वर्तमान में हैं और हम भविष्य की ओर देखते हैं।
हम भूत और भविष्य को देखते हैं और जो नहीं है उसकी कामना करते हैं। हमारा निष्कपट हास्य भी किसी वेदना से युक्त होता है।
इतिहास हमेशा किसी वर्तमान और उसके अतीत के बीच एक रिश्ता क़ायम करता है। फलस्वरूप वर्तमान का भय अतीत को रहस्यमय बनाने की ओर ले जाता है।
क्या आप अतीत की भाषा में वर्तमान का अनुवाद किए बग़ैर अपनी प्रतिक्रिया को एक नया सिरे से तथा एक ताजा मन से देख सकते हैं?
अतीत कोई ऐसी शय नहीं है, जिसके हम क़ैदी हों। हम अतीत के साथ एकदम अपनी इच्छा के अनुरूप कुछ कर सकते हैं। जो हम नहीं कर सकते, वह है अतीत के परिणामों को बदलना।
वर्तमान का और भविष्य का लाज़िमी तौर से भूतकाल में जन्म होता है और उन पर उसकी छाप होती है। इसको भूल जाने के मानी हैं, इमारत को बिना बुनियाद के खड़ा करना और क़ौमी तरक़्क़ी की जड़ को ही काट देना।
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हमें अपने अतीत से सीख लेनी चाहिए और तब हम नई ऊँचाइयों की ओर बढ़ेंगे।
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स्मृति एक जाल है—शुद्ध और सरल। यह बदलती है, यह अतीत को वर्तमान के अनुरूप करने के लिए उसे सूक्ष्मता से पुनर्व्यवस्थित करती है।
आज आसान नहीं है, कल और भी मुश्किल है, लेकिन परसों लाजवाब है।
हे पृथ्वी! तुम आज की नहीं, जन्म से ही चिरंतन सुंदरी हो! तुम मेरी अनन्त शांति की विश्रामस्थली और अतीत की स्वप्नलीला-भूमि हो।
अतीत के जिस अंश तक प्रमाण की किरणें पहुँच सकती हैं, उसे हम इतिहास की संज्ञा देते हैं। जो जीवन के स्पंदन से रहित इतिवृत्त मात्र है। जो हमारे तर्क की सीमा के पार घटित हो चुका है वह पुराण की सीमा में आबद्ध होकर जीवन की ऐसी गाथा बन जाता है जिसमें इतिवृत्त का सूत्र खोजना कठिन है।
अतीत में सक्रियता को आशावाद के साथ जोड़ा गया था, जबकि आज सक्रियतावाद के लिए निराशावाद की आवश्यकता है।
बीता हुआ कल आज की स्मृति है और आने वाला कल आज का स्वप्न।
अतीत वर्तमान के लिए अनिवार्य रूप से ज़रूरी है।
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वर्तमान अतीत की सत्ता के खेल से पैदा हुआ है।
सच तो यह है कि समय अपने बीतने के लिए किसी की भी स्वीकृति की प्रतीक्षा नहीं करता।
हमारा अतीत ही स्वयं को बढ़ाकर वर्तमान बन गया है। हम अतीत हैं, मेरा आशय वास्तविक हम से हैं।
ज़ख्म से उबरना ऐसी यात्रा है, जो अतीत से दूरी बनाने और नई शुरुआत की संभावनाओं को गले लगाती है।
कुलीनता का मार्ग सचमुच में ऊबड़-खाबड़ होता है।
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