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शर्म पर कविताएँ

शर्म का एक अर्थ लज्जा,

हया, संकोच आदि है; जबकि एक अन्य अर्थ में यह दोषभाव या ग्लानि का आशय देता है। इस चयन में शर्म विषय से संबंधित कविताओं को शामिल किया गया है।

अँधेरे का सौंदर्य-2

घुँघरू परमार

अकेले में शर्म आती है

रामकुमार तिवारी

सेज पर उदासी

मनोज कुमार झा

सकारात्मक

अंकिता आनंद

शर्म कर लो

पीयूष मिश्रा

बेशर्म दौर में

नित्यानंद गायेन

उस आदमी ने कहा

विशाल श्रीवास्तव

शर्मिंदा है ईश्वर

नंदकिशोर आचार्य

आज़ादी

उद्भ्रांत

शर्म के पक्ष में

अशोक कुमार पांडेय

शब्द

आलोक कुमार मिश्रा

पेंसिल

राकेश कुमार मिश्र

पुरानी शर्म

अनिल कुमार सिंह

नहीं जिनके नयनों में लाज

कृष्ण मुरारी पहारिया

शर्म थी

कैलाश मनहर

प्रेम और श्रद्धा

गोविंद माथुर

लज्जा

नरेश अग्रवाल

इतना बेशर्म

हरि मृदुल

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