चक पॉलनीक की संपूर्ण रचनाएँ
उद्धरण 24
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तुम ख़रीदते हो फ़र्नीचर। दुहराते हो ख़ुद से कि आख़िरी होगा यह सोफ़ा जिसकी ज़रूरत है इस जीवन में। अगले कुछ वर्षों तक तुम संतुष्ट रहते हो कि जो भी गुज़रे, सोफ़े के सवाल को तुमने सुलझा लिया। और फिर बर्तन, एक बढ़िया बिस्तर, पर्दे और तुम ग़ुलाम हो जाते हो अपने ही हसीन घोंसले के। वे वस्तुएँ जिनके तुम मालिक बनने निकले थे, अब तुम्हारी मालिक हैं।