Font by Mehr Nastaliq Web

शहर पर उद्धरण

शहर आधुनिक जीवन की आस्थाओं

के केंद्र बन गए हैं, जिनसे आबादी की उम्मीदें बढ़ती ही जा रही हैं। इस चयन में शामिल कविताओं में शहर की आवाजाही कभी स्वप्न और स्मृति तो कभी मोहभंग के रूप में दर्ज हुई है।

दिन-रात गर्द के बवंडर उड़ाती हुई जीपों की मार्फ़त इतना तो तय हो चुका है कि हिंदुस्तान, जो अब शहरों ही में बसा था, गाँवों में भी फैलने लगा है।

श्रीलाल शुक्ल

कविता-कहानी-नाटक के बाज़ार में जिन्हें समझदारों का राजपथ नहीं मिलता; वे आख़िर देहात में खेत की पगडंडियों पर चलते हैं, जहाँ किसी तरह का महसूल नहीं लगता।

रवींद्रनाथ टैगोर

मुझसे सीखें, यदि मेरे उपदेशों से नहीं, तो मेरे उदाहरण से सीखें कि ज्ञान की खोज कितनी ख़तरनाक है और वह व्यक्ति जो अपने मूल शहर को ही दुनिया मानता है, वह उस व्यक्ति की तुलना में कितना ख़ुश है जो अपनी शक्ति से बड़ा होने की आकांक्षा रखता है।

मैरी वोलस्टोनक्राफ़्ट

लखनऊ विचारकों का नहीं—स्वप्न-द्रष्टाओं का नगर है।

श्रीलाल शुक्ल

कोई भी शहर तानाशाही में विकसित नहीं हो सकता, क्योंकि जब निगरानी की जाती है, तब सब कुछ बौना रह जाता है।

हेर्टा म्युलर

आधुनिक सभ्यता रूपी लक्ष्मी जिस पद्मासन पर बैठी हुई है, वह आसन ईंट-लकड़ी से बना हुआ आज का शहर है।

रवींद्रनाथ टैगोर

शहर मुझसे होकर गुज़रते हैं।

ओउज़ अताय

मैं जहाँ भी जाती हूँ—शहर के चौक पर—किताबों की दुकानें अभी भी सबसे प्रिय हैं।

ग्लोरिया स्टाइनम

मैंने अपने दम पर शहर में घूमने का जोख़िम उठाया है। मैं पुस्तकालय के मानचित्रों, भूमिगत मानचित्रों, बस के मानचित्रों और नियमित मानचित्रों को देखती हूँ और उन्हें याद रखने की कोशिश करती हूँ। मुझे खो जाने का डर है; नहीं, मुझे किसी बालूपंक में डूबने की तरह शहर में डूबने से डर लगता है। मैं ऐसी चीज़ द्वारा सोखे जाने से डरती हूँ, जिससे मैं कभी नहीं बच सकती हूँ।

डेबोरा फ़ेल्डमैन
  • संबंधित विषय : डर

जब मैं युवा था : मैं सूर्यास्त, झोपड़पट्टियों और दुर्भाग्य की ओर आकर्षित होता था और अब मैं शहर के बीचोंबीच की सुबह और शांति की ओर आकर्षित होता हूँ। अब मैं हैमलेट नहीं बनता।

होर्खे लुइस बोर्खेस

क़स्बे अब शहर बन गए हैं पर महानगरों के पास आने की जगह और दूर चले गए हैं, भले नई संचार व्यवस्था यह दावा करते नहीं थकती कि उसने भौगोलिक और सामाजिक दूरियाँ मिटा दी हैं।

कृष्ण कुमार

शहर अमीरों के रहने और क्रय-विक्रय का स्थान है। उसके बाहर की भूमि उनके मनोरंजन और विनोद की जगह है।

प्रेमचंद

शहर में चायघर, कमेटी-रूम, पुस्तकालय और विधानसभा की जो उपयोगिता है, वही देहात में सड़क के किनारे बनी हुई पुलिया की है।

श्रीलाल शुक्ल

बड़े शहरों की जो बात मुझे सबसे ज़्यादा बुरी लगती है, वह यह कि वहाँ का कलाकार अपनी कला को बेचना चाहता है। उसके भीतर अपनी कला की रचना करने से ज़्यादा, बेचने का भाव भरा होता

लास्ज़लो क्रास्ज़्नाहोरकाई

शहर में हर दिक़्क़त के आगे एक राह है और देहात में हर राह के आगे एक दिक़्क़त है।

श्रीलाल शुक्ल

गाँव के गँवईपन में भी एक तरह की शोभन सभ्यता है यह शहरी गँवई बहुत कुत्सित है।

आशापूर्णा देवी

नगर अपने और अपने नगरवासियों के स्वभाव के अनुसार जब अपने रूप का आभास कराता है, तभी उसका स्वाभाविक चित्र बनता है।

अवनींद्रनाथ ठाकुर

शहर देहातियों को चूसने के लिए है।

महात्मा गांधी

यौवन रूपी नगर में अपने रूप को बेचना। जितना उचित हो, उतना ही मोल भाव करना।

विद्यापति

'गंज' अब कई जगहों से जुड़ चुका है पर उसका अनुभूत अर्थ 'गंजिंग' की क्रिया से ही उभरता है जो इतिहासकार शाहिद अमीन के अनुसार लखनऊ के हजरतजंग में इधर-उधर नज़र डालते हुए दुकानों के बीच तफ़री करने का नाम था।

कृष्ण कुमार

ग्रह का उज्ज्वल पक्ष अंधकार की ओर बढ़ रहा है और सभी शहर अपनी-अपनी घड़ी के अनुसार नींद में डूबते जा रहे हैं। और मेरे लिए, अब भी वैसा ही है, यह सब बहुत ज़्यादा है। दुनिया बहुत बड़ी है।

चेस्लाव मीलोष

मुझे न्यूयॉर्क से प्रेम है—उसके एक-एक इंच से। उस समय थोड़ा डर लगा था, लेकिन उत्साह का भाव बहुत मज़बूत था—बौद्धिक रूप से और जो दिख रहा था विजुअली। ये शहर किसी दैत्य-सा था।

आई वेईवेई