बड़े शहरों की जो बात मुझे सबसे ज़्यादा बुरी लगती है, वह यह कि वहाँ का कलाकार अपनी कला को बेचना चाहता है। उसके भीतर अपनी कला की रचना करने से ज़्यादा, बेचने का भाव भरा होता
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फ़िल्मों में आपके पास इतनी गुंजाइश नहीं होती। आप कहानी से दूर नहीं जा सकते, आपको जो कहना है, कहानी के भीतर कहना है। किताब में आप कहानी के दो हिस्सों के बीच आसानी से अपनी बात कह सकते हैं, चिंतन कर सकते हैं।
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बुराई का अस्तित्व है और दु:ख की बात यह है कि अच्छाई कभी उससे आगे नहीं बढ़ पाती।
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मुझे लगता है कि ज़िन्दगी का आख़िरी पड़ाव मृत्यु नहीं, बल्कि मृत्यु का डर है।
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मुझे वो उपन्यास पसंद नहीं, जिसका लेखक के वजूद से सीधा संबंध नहीं होता। मैं इसे बर्दाश्त नहीं कर सकता, लेकिन ये कवियों के साथ कुछ अलग होता है।
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