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शहर पर ब्लॉग

शहर आधुनिक जीवन की आस्थाओं

के केंद्र बन गए हैं, जिनसे आबादी की उम्मीदें बढ़ती ही जा रही हैं। इस चयन में शामिल कविताओं में शहर की आवाजाही कभी स्वप्न और स्मृति तो कभी मोहभंग के रूप में दर्ज हुई है।

बनारस : आत्मा में कील की तरह धँसा है

बनारस : आत्मा में कील की तरह धँसा है

एक बनारस के छायाकार-पत्रकार जावेद अली की तस्वीरें देख रहा हूँ। गंगा जी बढ़ियाई हुई हैं और मन बनारस में बाढ़ से जूझ रहे लोगों की ओर है, एक बेचैनी है। मन अजीब शै है। दिल्ली में हूँ और मन बनारस में है।

कुमार मंगलम
शहर, अतीत और अंत के लिए

शहर, अतीत और अंत के लिए

शहर शहर अपने आपमें कितना कुछ समेटे रहता है—बहुत सारी त्रासदी, पलायन, सांप्रदायिक दंगे और बहुत सारी ख़ुशियाँ भी। आप बहुत दिनों तक अकेले पड़े रहते हैं—हॉस्टल के कमरें में, किसी लाइब्रेरी के एक कोने में

प्रदीप्त प्रीत
मैं लेखकों की तरह नहीं लिख सकता

मैं लेखकों की तरह नहीं लिख सकता

But there are passions that it is not for man to choose. They are born with him at the moment of his birth into this world, and he is not granted the power to refuse them.                          

विजय शर्मा
‘एक विशाल शरणार्थी शिविर में’

‘एक विशाल शरणार्थी शिविर में’

किताबों से अधिक ज़रूरत है दवाओं की। दवाओं से अधिक ज़रूरत है परिचित दिशाओं की। दिशाओं से अधिक ज़रूरत है एक कमरे की। किराए का पानी, किराए की बिजली और किराए की साँस लेने के बाद; ख़ुद को किराए पर देने के

अतुल तिवारी
शहर, अतीत और अंत के लिए

शहर, अतीत और अंत के लिए

शहर शहर अपने आपमें कितना कुछ समेटे रहता है—बहुत सारी त्रासदी, पलायन, सांप्रदायिक दंगे और बहुत सारी ख़ुशियाँ भी। आप बहुत दिनों तक अकेले पड़े रहते हैं—हॉस्टल के कमरें में, किसी लाइब्रेरी के एक कोने में

प्रदीप्त प्रीत

जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली

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