जाड़े का दिन। अमावस्या की रात—ठंडी और काली। मलेरिया और हैज़े से पीड़ित गाँव भयार्त्त शिशु की तरह थर-थर काँप रहा था। पुरानी और उजड़ी बाँस-फूस की झोपड़ियों में अंधकार और सन्नाटे का सम्मिलित साम्राज्य! अँधेरा और निस्तब्धता! अँधेरी रात चुपचाप आँसू बहा रही
वह लड़का एक चौकोर लाल पत्थर के पास बैठ गया। उसने जल्दी-जल्दी कोई प्रार्थना बुदबुदाई और छेनी हथौड़ा उठाकर अपने काम में जुट गया। कुछ दिन पहले ही उसने इस पत्थर पर घंटियों की क़तारें और कड़ियाँ उकेरना शुरू किया था। लड़के ने एक अधबनी अधूरी घंटी पर छेनी
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जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली
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