
जहाँ तक मुझे याद आता है कि मैं हमेशा गहरे अवसाद से पीड़ित रहा जो मेरी कलाकृतियों में भी झलकता है।


उत्पीड़ित लोग हमेशा अपने बारे में सबसे बुरा सोचेंगे।

उत्पीड़ितों को सब लोगों को समझाने की ज़रूरत नहीं है। उन्हें बस यह जानना है कि वर्तमान प्रणाली उन्हें नष्ट कर रही है।

जो प्रजा की रक्षा नहीं करता, केवल उसके धन को हरण करता है तथा जिसके पास कोई नेतृत्व करने वाला मंत्री नहीं है, वह राजा नहीं, कलियुग है। समस्त प्रजा को चाहिए कि ऐसे निर्दयी राजा को बाँधकर मार डाले।

बिना प्रतिनिधित्व के कर लगाना अत्याचार है।

काम से पीड़ित लोग जड़-चेतन पदार्थों के संबंध में स्वभावतः विवेकशून्य हो जाया करते हैं।

जनता ग़रीबी से उबरने का रास्ता पूछती है, सरकार उसके हाथ में 'निरोध' का पैकेट थमा देती है।