Font by Mehr Nastaliq Web

कवि पर उद्धरण

कवि को लिखने के लिए कोरी स्लेट कभी नहीं मिलती है। जो स्लेट उसे मिलती है, उस पर पहले से बहुत कुछ लिखा होता है। वह सिर्फ़ बीच की ख़ाली जगह को भरता है। इस भरने की प्रक्रिया में ही रचना की संभावना छिपी हुई है।

केदारनाथ सिंह

अपने स्वयं के शिल्प का विकास केवल वही कवि कर सकता है, जिसके पास अपने निज का कोई ऐसा मौलिक-विशेष हो, जो यह चाहता हो कि उसकी अभिव्यक्ति उसी के मनस्तत्वों के आकार की, उन्हीं मनस्तत्वों के रंग की, उन्हीं के स्पर्श और गंध की ही हो।

गजानन माधव मुक्तिबोध

प्रत्येक सर्जक या विधाता, जीवन के चाहे जिस क्षेत्र की बात हो—‘विद्रोही’ और ‘स्वीकारवादी’ दोनों साथ ही साथ होता है।

कुबेरनाथ राय

एक सुभाषित है—'कवितारसमाधुर्य्यम् कविर्वेत्ति’, कविता का रस-माधुर्य सिर्फ़ कवि जानता है। ठीक उसी प्रकार सुर में सुर मिलना चाहिए, नहीं तो वाद्ययंत्र कहेगा ‘गा’ और गले से निकलेगा ‘धा’।

अवनींद्रनाथ ठाकुर

सर्जक या रचनाकार के लिए ‘नॉनकन्फर्मिस्ट’ होना ज़रूरी है। इसके बिना उसकी सिसृक्षा प्राणवती नहीं हो पाती और नई लीक नहीं खोज पाती।

कुबेरनाथ राय

कविता आदमी को मार देती है। और जिसमें आदमी बच गया है, वह अच्छा कवि नहीं है।

धूमिल

कवि मात्र जन्म से ही कवि नहीं होता, उसे अभ्यास भी करना पड़ता है; किन्तु अभ्यास उन्हीं को फलता है, जो जन्म से भी कवि हैं।

रामधारी सिंह दिनकर

दिवंगत होने पर भी सत्काव्यों के रचयिताओं का रम्य काव्य-शरीर; निर्विकार ही रहता है और जब तक उस कवि की अमिट कीर्ति पृथ्वी और आकाश में व्याप्त है, तब तक वह पुणयात्मा देव-पद को अलंकृत करता है।

भामह

कवित्व-शक्ति से विहिन व्यक्ति का शास्त्रज्ञान धनहीन के दान के समान, नपुंसक के अस्त्रकौशल के समान तथा ज्ञानहीन की प्रगल्भता के समान निष्फल होता है।

भामह

जनता मुझसे पूछ रही है, क्या बतलाऊँ?

जनकवि हूँ मैं, साफ़ कहूँगा, क्यों हकलाऊँ।

नागार्जुन

जो कवि केवल सौंदर्य का प्रेमी है, वह शुद्ध कलाकार बन जाता है।

रामधारी सिंह दिनकर

कवि को पंडित, आचार्य या संपादक होने की आवश्यकता नहीं है, उसके काव्य का सौंदर्य; उसके पांडित्य और आचार्यत्व पर निर्भर होकर, उसकी भाव-समृद्धि और अभिव्यक्ति-क्षमता पर निर्भर है।

गजानन माधव मुक्तिबोध

जिन लोगों के मन में केशव के काव्य के बारे में रूखेपन और पाण्डित्य का भ्रम है, उन्हें कदाचित् यह पता नहीं है कि केशव हिंदी के उत्तर-मध्य युग के कवियों में सबसे अधिक व्यवहारविद्, लोक-कुशल और मनुष्य के स्वभाव के मर्मज्ञ कवि हैं।

विद्यानिवास मिश्र

हे नारी! तुम्हारे स्पर्श से ही पृथ्वी को रूप मिला है और सुधा रस का स्पर्श मिला है! जीवन कुसुम को परिवेष्टित कर कवियों ने विश्व गुंजा दिया जिससे काव्य का सुरस विकसित हो उठा।

नलिनीबाला देवी

मैं स्वयं को असफल मनुष्य, असफल कवि, असफल पशु, असफल देवता और असफल ब्रह्मराक्षस मानता हूँ। सफल होना मेरे लिए संभव नहीं है। मेरे लिए केवल संभव है—होना।

राजकमल चौधरी

कवि अदृश्य का पुजारी होता है।

वॉलेस स्टीवंस

टीकाकारों ने कवि का अर्थ मेधावी और प्रतिभाशाली किया है।

वासुदेवशरण अग्रवाल

कवि दुनिया को वैसे ही देखता है, जैसे आदमी किसी औरत को देखता है।

वॉलेस स्टीवंस

कवि के लिए, मौन स्वीकार्य ही नहीं, बल्कि ख़ुश करने वाली प्रतिक्रिया है।

कोलेट

कविता तो एक जीवन को तोड़कर सकल जीवन बनाती है। और जीवन टूटता है, वह कवि का है।

त्रिलोचन

वह व्यक्ति जो कविता की भावनाओं से महान प्रसन्नता प्राप्त करता है, सच्चा कवि है—चाहे उसने पूरे जीवन में कभी एक पंक्ति भी लिखी हो।

जॉर्ज सैंड

कवि का रास्ता धूमकेतु की तरह है।

मरीना त्स्वेतायेवा

गुरु के उपदेश से तो मंदबुद्धि व्यक्ति भी शास्त्रों का अध्ययन कर सकते हैं, लेकिन काव्य तो किसी प्रतिभाशाली को कभी-कभी ही (सदा-सर्वदा नहीं) स्फुरित होता है।

भामह

कवि इस संसार के अघोषित विधिनिर्माता होते हैं।

हुआन रामोन हिमेनेज़

कवि कीड़ों से रेशम के कपड़े बनाता है।

वॉलेस स्टीवंस

सुरूप-कुरूप दोनों को मिलाकर सुंदर की अखंड मूर्ति की कल्पना करना कठिन ज़रूर है किंतु मनुष्य के लिए एकदम असंभव है, यह नहीं कहा जा सकता है। भक्त, कवि और आर्टिस्ट—इनके लिए सुंदर-असुंदर जैसी कोई चीज़ है ही नहीं, सभी चीज़ों और भावों में जो वस्तु नित्य है, उसी को वे सुंदर रूप में मानते हैं।

अवनींद्रनाथ ठाकुर

सही कवि भविष्य में देख सकते हैं।

स्वदेश दीपक

सुकवि की मुश्किल को कौन समझे, सुकवि की मुश्किल। सुकवि की मुश्किल। किसी ने उनसे नहीं कहा था कि आइए आप काव्य रचिए।

रघुवीर सहाय

जिसे संसार दुःख कहता है, वही कवि के लिए सुख है।

प्रेमचंद

माधुर्य और प्रसाद गुण चाहने वाले सुधी कवि, अधिक समस्त (समासयुक्त) पदों का प्रयोग नहीं करते। कुछ कवि जिन्हें ओज की अभिव्यक्ति ही वांछित है, अत्यधिक समस्त पदों का प्रयोग करते हैं। उदाहरणार्थ ‘मंदारकुसुमरेणुपिञ्जरितालका’ अर्थात मंदार वृक्ष के पराग से पीली अलकों वाली नायिका।

भामह

देखो वृक्ष को देखो वह कुछ कर रहा है।

किताबी होगा कवि जो कहेगा कि हाय पत्ता झर रहा है।

रघुवीर सहाय
  • संबंधित विषय : पेड़

अत्यधिक दुःखी लोग गलती से काव्य-क्षेत्र में जाते हैं। जो वे गीतों में सिखाते हैं, उसे वे दुःखों में सीखते हैं।

शंकर शैलेंद्र

सुकवि के वचन अर्थादि का विचार किए बिना ही आनंदमग्न कर देते हैं, पुण्यमयी नदियाँ स्नान के बिना ही दर्शनमात्र से ही पवित्र कर देती हैं।

कवि कर्णपूर

केशव को कवि हृदय नहीं मिला था। उनमें वह सहृदयता और भावुकता थी जो एक कवि में होनी चाहिए। वे संस्कृत साहित्य से सामग्री लेकर अपने पांडित्य और रचना-कौशल की धाक जमाना चाहते थे। पर इस कार्य में सफलता प्राप्त करने के लिए भाषा पर जैसा अधिकार चाहिए, वैसा उन्हें प्राप्त था।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल

निराला का संघर्ष, स्थिति-रक्षा का संघर्ष है।

गजानन माधव मुक्तिबोध

यदि कवि का ज्ञान-पक्ष दुर्बल है, यदि उसका ज्ञान; आत्म-पक्ष, बाह्य-पक्ष और तनाव के संबंध में अधूरा अथवा धुँधला है, अथवा यदि वह तरह-तरह के कुसंस्कारों और पूर्वग्रहों तथा व्यक्तिबद्ध अनुरोधों से दूषित है, तो ऐसे ज्ञान की मूलभूत पीठिका पर विचरण करनेवाली भावना या संवेदना निस्संदेह विकारग्रस्त होगी।

गजानन माधव मुक्तिबोध

कवि का प्रायोगिक काव्य सफल हो या असफल, वह कवि की प्रसरणशील और विकासशील चेतना का चिन्ह तो है ही।

गजानन माधव मुक्तिबोध

जब हम किसी काव्य की आलोचना करते हैं, तब यह जानना चाहते हैं कि कवि अपने मनोभावों को व्यक्त करने में कहाँ तक असमर्थ हुआ हैं।

श्यामसुंदर दास

आज ऐसे कवि-चरित्र की आवश्यकता है, जो मानवीय वास्तविकता का बौद्धिक और हार्दिक आकलन करते हुए; सामान्य जनों के गुणों और उनके संघर्षों से प्रेरणा और प्रकाश ग्रहण करें, उनके संचित जीवन-विवेक को स्वयं ग्रहण करे तथा उसे और अधिक निखारकर, कलात्मक रूप में उन्हीं की चीज़ को उन्हें लौटा दे।

गजानन माधव मुक्तिबोध

कवि को चित्रकार का स्थानापन्न बना देने से और उस स्थानापन्न कवि के सम्मुख कार्यक्षेत्र विस्तृत कर देने से, शमशेर की रचनात्मक प्रतिभा ने बहुत बार घोटाला कर दिया है—ऐसा मेरा ख़याल है।

गजानन माधव मुक्तिबोध

इंप्रेशनिस्ट चित्रकार दृश्य के सर्वाधिक संवेदनाघात करनेवाले अंशों को प्रस्तुत करेगा, और यह मानकर चलेगा कि यदि यह संवेदनाघात दर्शक के हृदय में पहुँच गया; तो दर्शक अचित्रित शेष अंशों को, अपनी सृजनशील कल्पना द्वारा भर देगा।

गजानन माधव मुक्तिबोध

उर्दू कवियों की सबसे बड़ी विशेषता उनका मातृभूमि-प्रेम है। इसलिए बंबई और कलकत्ता में भी वे अपने गाँव या क़स्बे का नाम अपने नाम के पीछे बाँधे रहते हैं और उसे खटखटा नहीं समझते। अपने को गोंडवी, सलोनवी और अमरोहवी कहकर वे कलकत्ता-बंबई के कूप-मंडूक लोगों को इशारे से समझाते हैं कि सारी दुनिया तुम्हारे शहर ही में सीमित नहीं है। जहाँ बंबई है, वहाँ गोंडा भी है।

श्रीलाल शुक्ल

जितना कवि समय को, उतना ही समय कवि को गढ़ता है।

अशोक वाजपेयी
  • संबंधित विषय : समय

वह शब्द नहीं, वह अर्थ नहीं, वह न्याय नहीं, वह कला नहीं, जो काव्य का अंग बनती हो। कवि का दायित्व कितना बड़ा है!

भामह

कवि-कर्म केवल प्रतिभा का प्रकटीकरण है, वह अभ्यास की भी अभिव्यक्ति है। प्रतिभा और अभ्यास के योग से कवि-कर्म निष्पन्न होता है।

गजानन माधव मुक्तिबोध

भय और काम मनुष्य को दीन और आतुर बनाते हैं, ‘कवि’ और ‘प्रॉफ़ेट’ नहीं।

कुबेरनाथ राय

सभी जानते हैं कि हमारे कवि और कहानीकार वास्तव में दार्शनिक हैं और कविता या कथा-साहित्य तो वे सिर्फ़ यूँ ही लिखते हैं।

श्रीलाल शुक्ल

मनोवैज्ञानिक वस्तुवादी कवि; जब सामाजिक भावनाओं तथा विश्व-मैत्री की संवेदानाओं से आच्छन्न होकर मानचित्र प्रस्तुत करता है, तब वह उसी प्रकार अनूठा और अद्वितीय हो उठता है जैसे कि किसी क्षेत्र में भिन्न तथा अन्य कवि कदापि नहीं।

गजानन माधव मुक्तिबोध

कवि का कार्य-क्षेत्र चित्रकार से अधिक विस्तृत है।

गजानन माधव मुक्तिबोध

फ़िलासफ़ी बघारना प्रत्येक कवि और कथाकार के लिए अपने-आपमें एक ‘वैल्यू’ है, क्योंकि मैं कथाकार हूँ, क्योंकि ‘सत्य’, ‘अस्तित्व’ आदि की तरह ‘गुटबंदी’ जैसे एक महत्त्वपूर्ण शब्द का ज़िक्र चुका है, इसीलिए सोलह पृष्ठ के लिए तो नहीं, पर एक-दो पृष्ठ के लिए अपनी कहानी रोककर मैं भी पाठकों से कहना चाहूँगा कि सुनो-सुनो हे भाइयो, वास्तव में तो मैं एक फ़िलासफ़र हूँ, पर बचपन के कुसंग के कारण...।

श्रीलाल शुक्ल