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कवि कर्णपूर

1524 | नादिआ, पश्चिम बंगाल

कवि कर्णपूर की संपूर्ण रचनाएँ

उद्धरण 14

पवित्र नदियाँ, बिना स्नान किए, अपने दर्शनमात्र से ही दर्शक का मन पवित्र कर देती हैं।

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सभी जंतु अपने-अपने कर्म के अनुसार जन्म लेते हैं, कर्मानुसार ही मरते हैं और कर्मानुसार ही विद्यमान रहते हैं। जो व्यक्ति जब जैसा कर्म करता है, वही देवता है।

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उपासनीय कौन है? जो सरस है सरस कोन है? जो प्रेम का स्थान है। प्रेम क्या है? जिसमें वियोग हो। वह वियोग कौन सा है? जिससे प्रेमी जीवित नहीं रहते।

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हे कमलनयनी! मूर्ख व्यक्ति शोक से पीड़ित होकर दुःखी होते रहते हैं परंतु बुद्धिमान लोग अज्ञान को दूर करके आनंदित होते हैं।

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उत्कंठित व्यक्तियों की उत्कंठा समय की अपेक्षा करके नहीं होती।

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