पूर्वकृत कर्मों का परिणाम आदि अर्थ देता है।
प्राचीन काल में हिमालय पर्वत पर न्यग्रोध का एक बहुत बड़ा वृक्ष था, जिसके पास एक तीतर, एक बंदर और एक हाथी रहता था। उन तीनों में बहुत मित्रता थी; पर उनमें परस्पर छोटे बड़े का कोई भाव नहीं था, इसलिए यह भी निश्चित नहीं था कि किसके प्रति कौन कितनी मर्यादा
प्राचीन काल में वाराणसी के राजा ब्रह्मदत्त के समय में बोधिसत्व ने एक बैल का जन्म धारण किया था। उस समय वे एक भूस्वामी या ज़मींदार के घर में रहा करते थे। उनका नाम था महालोहित। उनके साथ उनका छोटा भाई भी रहता था जिसका नाम चुल्ललोहित था। उस ज़मींदार की
प्राचीन काल में वाराणसी में ब्रह्मदत्त नामक एक राजा राज्य करता था। बोधिसत्व ने उसके पुत्र के रूप में जन्म लिया था। उस समय उनका नाम महिंसासकुमार था। जब वे दो तीन वर्ष के हुए, तब उनका एक और छोटा भाई उत्पन्न हुआ। राजा ने उसका नाम चंद्र कुमार रखा। जब चंद्रकुमार
बहुत दिनों की बात है, मगध के राजा लोग राजगृह नगर में रहा करते थे। उस समय बोधिसत्व ने मगध के मचल नामक ग्राम में उच्च कुल के एक ब्राह्मण के घर में जन्म लिया था। नामकरण के समय उनका नाम मघकुमार रखा गया था। पर जब वे बड़े हुए तब लोग उन्हें मधमाणवक उनके माता-पिता
प्राचीन काल में बोधिसत्व किसी वन में पद्म सरोवर के पास के एक वृक्ष पर वृक्ष-देवता के रूप में निवास किया करते थे। वहाँ पास ही एक छोटा तालाब था, जिसका जल ग्रीष्म ऋतु में बहुत घट जाता था। उस तालाब में मछलियों रहा करती थीं। एक दिन एक बगले ने उन मछिलयों को
एक बार वाराणसी के राजा ब्रह्मदत्त अपने उद्यान में विहार करने के लिए गए थे। वहाँ वे फल-फूल आदि एकट्ठा करने के लिए इधर-उधर घूम रहे थे। इतने में उन्होंने देखा कि एक स्त्री गीत गा गाकर लकड़ियाँ चुन रही है। ब्रह्मदत्त ने उसके रूप पर मुग्ध होकर उसी समय उसके
अपण्णक* जातक प्राचीन काल में वाराणसी में ब्रह्मदत्त नामक एक राजा था। उसके समय में बोधिसत्व ने एक वणिक के घर में जन्म लिया था। बोधिसत्व बड़े होने पर व्यापार करने लगे। उनके पास पाँच सौ बैल-गाड़ियों थीं। उन्हीं गाड़ियों पर माल लादकर वे कभी पूरब और कभी
मृतकभक्त जातक प्राचीन काल में वाराणसी के राजा ब्रह्मदत्त के समय में एक प्रसिद्ध त्रिवेदज्ञ ब्राह्मण अध्यापक रहता था। एक दिन उसने मृतकभक्त देने के लिए एक बकरा लाकर अपने शिष्यों को दिया और कहा—"इसे ले जाकर नदी में स्नान करा लाओ, इसके गले में माला पहनाकर,
प्राचीन काल में वाराणसी में ब्रह्मदत्त नामक एक राजा रहता था। उसके समय में बोधिसत्व ने श्रेष्ठि कुल में जन्म लिया था। जब बोधिसत्व बड़े हुए, तब वे भी श्रेष्ठि के पद पर नियुक्त हुए। लोग उनको चुल्लश्रेष्ठि (छोटा सेठ) कहा करते थे। वे बहुत ही विद्वान और बुद्धिमान्
प्राचीन काल में विदेह राज्य की मिथिला नगरी में मखादेव नामक एक धर्मपरायण राजा राज्य करता था। पहले कुमार रहकर, फिर उपराज होकर और अंत में महाराज होकर उसने चौरासी हज़ार वर्ष तक सुखपूर्वक शासन करते हुए अपना समय बिताया था। उसने अपने नापित से कह रखा था—"जब
प्राचीन काल में वाराणसी के राजा ब्रह्मदत्त के समय में बोधिसत्व ने एक संपन्न ब्राह्मण के घर में जन्म लिया था। जब वे बड़े हुए तब उन्होंने तक्षशिला में जाकर ख़ूब विद्याध्ययन किया और सब विद्याओं में पारंगत हो गए। पश्चात् काशी में आकर वे अध्यापन का कार्य
प्राचीन काल में तत्क्षशिला में गांधार लोग राज्य करते थे। उस समय बोधिसत्व ने बछड़े का जन्म धारण किया था। जिस समय वे नज मे थे, उसी समय एक ब्राह्मण ने किसी दाता से उन्हें प्राप्त किया था। ब्राह्मण ने उनका नाम नन्दिविलास रखा था। वह उन्हें अच्छे-अच्छे पदार्थ
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