08 जनवरी 2025
किसे आवाज़ दूँ जो मुझे इस जाल से निकाले!
14 दिसंबर 2024 इच्छाएँ बेघर होती हैं, उन्हें जहाँ भी चार दीवार और एक छत का आसरा दिखता है, वो वहीं टिक जाना चाहती हैं। मनुष्य का मन इच्छाओं का पहला घर है, चारों तरफ़ भटकने के बाद पहली बार उसे मनुष्
मोहब्बत की फ़ेहरिस्त से ग़ायब मुमताज़-शाहजहाँ
ताजमहल के दीदार की मेरी कभी ख़्वाहिश ही नहीं हुई। इसमें ताजमहल की कोई ख़ता भी नहीं, बस हालात ज़रा ज़ालिम बनते गए और जब भी ताज का ज़िक्र आया तो मुँह का ज़ायक़ा कसैला हो गया। ज़िंदगी की पहली पारी का शुरुआती
क़ुबूलनामा : एक एंबुलेंस ड्राइवर का
डिस्क्लेमर : क़ुबूलनामा शृंखला में प्रस्तुत लेखों में वर्णित सभी पात्र, कहानियाँ, घटनाएँ और स्थान काल्पनिक हैं; जो किसी भी व्यक्ति, समूह, समाज, सरकारी-ग़ैरसरकारी संगठन और अधिकारियों से कोई संबंध न