मुझे यक़ीन है कि अब वह कभी लौटकर नहीं आएँगे
तड़के तीन से साढ़े तीन बजे के बीच वह मेरे कमरे पर दस्तक देते, जिसमें भीतर से सिटकनी लगी होती थी। वह मेरा नाम पुकारते, बल्कि फुसफुसाते। कुछ देर तक मैं ऐसे दिखावा करता, मानो मुझे कुछ सुनाई नहीं पड़ रहा हो
छूटती हुई हर चीज़ मुझे घर मालूम लगती है
02 अप्रैल 2024 (सूरतगढ़ से जैसलमेर के बीच कहीं ट्रेन में) हम सब शापित हैं। अपनी ही चुप्पियों का कोई तय ठिकाना नहीं ढूँढ़ पाने पर। चलते हुए कहानियाँ बनी—मिलने की, साथ में रोने की और दूर तक ज
डिप्रेशन : नींद क्यूँ रात भर नहीं आती!
मैंने अवसाद पर कई कविताएँ लिखी हैं, लेकिन वे सारी बीते दिनों में किसी को देख-समझकर लिखी गई थीं। इन दिनों दिमाग़ की दवा खाने के बाद भी जिस तरह की नकारात्मकता अंदर और मेरे बाहर पर क़ाबिज़ हो गई है, वह दुः