काका कालेलकर की संपूर्ण रचनाएँ
यात्रा वृत्तांत 3
उद्धरण 11

भारतीय धर्म ने और भारतीय संस्कृति ने कभी नहीं कहा कि केवल हमारा ही एक धर्म सच्चा है और बाक़ी के झूठे हैं। हम तो मानते हैं कि सब धर्म सच्चे हैं, मनुष्य के कल्याण के लिए प्रकट हुए हैं। सब मिल कर इनका एक विशाल परिवार बनता है। इस पारिवारिकता को और आत्मीयता को को जो चीज़ें खंडित करती है उनकी छोड़ देने के लिए सब को तैयार रहना ही चाहिए। हर एक धर्म-समाज अंतर्मुख होकर अपने दिल को टटोल कर देखे कि जागतिक मानवीय एकता का द्रोह हमसे कहाँ तक हो रहा है।