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गुरु गोविंद सिंह

1666 - 1708 | पटना, बिहार

सिक्खों के दसवें और अंतिम गुरु। 'खालसा पंथ' के संस्थापक। 'चंडी-चरित्र' के रचनाकार।

सिक्खों के दसवें और अंतिम गुरु। 'खालसा पंथ' के संस्थापक। 'चंडी-चरित्र' के रचनाकार।

गुरु गोविंद सिंह की संपूर्ण रचनाएँ

सबद 2

 

सवैया 9

उद्धरण 5

वह सबको शरण देने वाला है, दाता और सहायक है। अपराधों को क्षमा करने वाला है, जीविका देने वाला है और चित्त को प्रसन्न करने वाला है।

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जिसे भगवान् बचाता है, उसका शत्रु क्या कर सकता है? उसकी तो छाया को भी शत्रु नहीं छू सकता। उसके प्रति असमर्थ शत्रु के प्रयत्न निष्फल हो जाते हैं।

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जो ईश्वर के वाक्यों पर विश्वास करता है उसके लिए भगवान स्वयं पथ-प्रदर्शक बन कर आता है।

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वह पूर्ण से भी पूर्ण है, सदा स्थिर रहने वाला है और कृपालु है। इच्छानुसार देने वाला है, जीविका देने वाला है, कृपालु और दयालु है।

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हे साक़ी (परमात्मा)! मुझे हरे रंग का मधुपात्र दे, जिससे कि वह मेरे लिए युद्धकाल में कार्योपयोगी सिद्धिप्रद हो। तू मुझे वह दे जिससे कि मैं अपने हृदय को ताज़ा कर लूँ और कीचड़ में सने मोती को कीचड़ से निकालने में समर्थ बनूँ।

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