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असावधानी पर उद्धरण

बच्चा एक अनकही कहानी होता है, उसकी कहानी हमारे दिए शब्दों में नहीं कही जा सकती। उसे अपने शब्द ढूँढ़ने का समय और स्थान चाहिए, ढूँढ़ने के लिए ज़रूरी आज़ादी और फ़ुर्सत चाहिए। हम इनमें से कोई शर्त पूरी नहीं करते। हम उन्हें अपने उपदेश सुनने से फ़ुर्सत नहीं देते, उन्हें सुनने की फ़ुर्सत हमें हो–यह संभव ही नहीं।

कृष्ण कुमार

संविधान सुधार दिया गया, उच्चतम न्यायालय कह चुका, पर हमें बच्चों की आवाज़ सुनाई नहीं दे रही। वे हमारे बीच रहते हैं; हमारी परछाइयों के घेरे में क़ैद। परछाई से बाहर तभी जाने दिए जाते हैं जब परछाई उन पर पड़ चुकी होती है और उनकी आवाज़ पूरी तरह एक स्वीकृत ज़बान में गढ़ी जा चुकती है। क्या आश्चर्य कि ऐसे समाज में बाल साहित्य न्यून मात्रा में है।

कृष्ण कुमार

कार्य-सिद्धि के उपायों में लगे रहने वाले भी असावधानी से अपने कार्यों को नष्ट कर देते हैं।

माघ

निश्चिंत हो जाने का अर्थ होता है असावधान हो जाना।

लक्ष्मीनारायण मिश्र