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स्त्री पर दोहे

स्त्री-विमर्श भारतीय

समाज और साहित्य में उभरे सबसे महत्त्वपूर्ण विमर्शों में से एक है। स्त्री-जीवन, स्त्री-मुक्ति, स्त्री-अधिकार और मर्दवाद और पितृसत्ता से स्त्री-संघर्ष को हिंदी कविता ने एक अरसे से अपना आधार बनाया हुआ है। प्रस्तुत चयन हिंदी कविता में इस स्त्री-स्वर को ही समर्पित है, पुरुष भी जिसमें अपना स्वर प्राय: मिलाते रहते हैं।

सकल क्षत्रपति बस किये, अपणे ही बल बाल।

सबल कुँ अबला कहै, मूरख लोग जमाल॥

स्त्री अपने (लावण्य के) बल पर बड़े-बड़े महाराजाओं को वश में कर लेती है। इतने पर भी इस प्रकार की सबला (स्त्री) को अबला कहना, (और असावधान रहना) अज्ञानियों का काम है।

जमाल

साँप बिच्छू का मंत्र है, माहुरहू झारा जाय।

विकट नारि के पाले परे, काढ़ि कलेजा खाय॥

सर्प तथा बिच्छू के काट और छेद लेने पर उनके विष को दूर करने के लिए वैद्य एवं डॉक्टरों की अनेक राय हैं। खाया हुआ विष भी औषध देकर टट्टी एवं वमन द्वारा गिराया जा सकता है। परंतु भयंकर स्त्री के चंगुल में फंस जाने पर उसके विष से छुटकारा पाना कठिन है। वह पुरुष का कलेजा निकालकर खा लेती है।

कबीर

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