वापसियों की यात्रा क्या त्रासदियों के अंत से शुरू होती है?
अंचित
29 अगस्त 2025

अचानक ही तुम्हें अपनी भटक का उद्गम मिल गया है। वह इतना अस्ल है कि तुम उससे घबरा गए हो। तुम चाहते हो, तुम जितनी जल्दी हो सके—उसे भाषा में उतार दो। भले ही वह अधूरा ही उतरे, लेकिन क़ुबूल हो जाए। भले उसके बाद तुम अकेले एक कैफ़े में बैठे देर तक फूट-फूट कर रोते रहना क़ुबूल करो। वह अभी तक अनचिन्हा रहा है। तुम्हारे दिमाग़ के सबसे गहरे गड्ढे में दबा हुआ। वह तुमको और नाक़ाबिल बनाएगा, लेकिन तुम सोचते हो कि अब इससे कोई बहुत फ़र्क़ नहीं पड़ता। पहली बार, तुम कला की माँगों के बारे में नहीं सोच रहे, तुम किसी और के बारे में नहीं सोच रहे, तुम अपने बारे में सोच रहे हो। अर्थ इस तरह तुम पर कभी तारी नहीं हुआ था। न उसके इतने सुगढ़ होने की संभावना से तुम कभी जूझे थे। तुम इसे अपने दोस्तों से नहीं कह पाओगे। कह दोगे तो समझा नहीं पाओगे। जीवन की औसतता उसको हल्का करेगी, तुम उनकी मुस्कुराहटों से पीड़ा महसूस करोगे और उस पीड़ा में किसी का होना। उनका होना जो कभी नहीं थीं और जो हमेशा थीं।
तुम लगभग छत्तीस के हो गए हो, इतने दिनों में तुमने अपनी सीमाओं के कई अनुभव किए हैं। जब तक यह भी भाषा में नहीं आएगा तुम्हारी सीमा से बाहर रहेगा। तुम्हारी उँगलियाँ लिखते हुए काँपती हैं। तुम्हारे अक्षर अब तुम्हें ही समझ नहीं आते। तुम्हारी देह पर झुर्रियाँ हैं, तुम्हारा दिल कमज़ोर हो गया है, तुमने अवसाद की हर लहर पर तैर कर देखा है और ख़ुशियों से बेतरह डरे रहे हो। खोना तुम्हारे लिए इतना पुराना हो गया है कि उसके मानी ख़त्म हो गए हैं। तुम्हारी ट्रेनिंग ऐसी है कि तुम उन्हें भी संशय से देखोगे। सोचोगे कि यह कोई आदर्श नॉस्टैल्जिया है, जिसको तुम्हारे दिमाग़ ने तुमको बचाने के लिए पैदा किया है। तुम सोचोगे कि तुम कोई दार्शनिक होते तो अभी तक पागल हो गए होते। फिर तुम ख़ुद से कहोगे कि यह भी पागलपन है कि तुम छब्बीस सालों के बाद उनके बारे में सोच रहे हो। तुम बच्चों को पढ़ाना छोड़कर बीच कक्षा, यह ख़ुद से कहने के लिए भाग खड़े हुए हो। तुम पढ़ाते हो क्योंकि वह भी पढ़ाती थीं। क्या तुम अभी तक उनको ही खोज रहे हो?
तुम सरलताओं की तरफ़ भागे हो, लेकिन सरलताएँ इस समय की मूढ़ताएँ हैं। तुमने पाया है कि जो सरल हुआ है, वह आस्था के क़रीब गया है और यह आस्थाएँ किसी कलेक्टिव की बेहतरी नहीं, अपनी ग्लानियों के और अपनी कमियों के अस्वीकार से बनी हैं। तुम आस्था चाहते हो और कविता चाहते हो। तुम दोनों से भटके हुए हो। तुम दोनों से छूटे हुए हो। तुम कैसे कहोगे किसी से कि तुम थॉमस मान के कहे का मतलब अब समझे हो, सोलह सालों के बाद। तुम उनके नीले कपड़ों के बारे में सोचते हो। तुम सुबह तीन बजे से आँखें बंद कर याद करते रहे हो कि तुम्हारे दिमाग़ में उनकी गंध का कोई हल्का रेशा भी अब बचा है या नहीं! तुम्हें अपना एडिपस मिल गया है, और वह पूरा एडिपस भी नहीं है। तुम्हें सब अधूरा बदा है और देर से। वापसियों की यात्रा क्या त्रासदियों के अंत से शुरू होती है? यह तो तय लगता है कि त्रासदियों का अंत सुखों का आरंभ नहीं है। फिर भी वर्षों बाद तुम्हारे भीतर कुछ हिल रहा है, जो तुमको पुलका रहा है। तुम इस संवेदन के नएपन से चकित हो जबकि उनका होना तुम्हारे होने जितना पुराना है। तुमने असंख्य स्थितियों में उनके होने की कल्पना की है। तुमने तब से उनको लेकर जटिल स्वप्न देखे हैं, जबसे तुमने जटिलता नहीं जानी थी। आख़िरकार तुम दैहिकता से उबर गए हो। और फिर यह सोच रहे हो कि उनके होंठ इतने पतले थे कि जैसे थे ही नहीं। क्या हर बार, इसलिए?
यह एक नई वेव है और इसलिए घोड़ों की पीड़ा से व्यथित वह दार्शनिक तुमको जीभ दिखा रहा है। आख़िर अनैतिकता का स्वीकार सीखने की सलाहियत तुमको उसी से मिली है। यह बहादुरी अंत में उसी ने दी है। तुम एक पुराने स्कूल में भटक रहे हो। तुम एक बिल्डिंग से दूसरी में सीढ़ियाँ चढ़-उतर रहे हो। तुमको कई चेहरे दिख रहे हैं। तुम सिर्फ़ एक चेहरा देखने के लिए वहाँ गए हो। वह एक चेहरा वहाँ नहीं है। तुमने सिर्फ़ एक बार उनको रोते देखा है और उसकी यातना अभी भी तुम्हारे भीतर कहीं रह रही है। तुम्हारी आदर्श कामना उसी एक क्षण में फ़्रिज हो गई है। तुम यह जानते भी नहीं। तुमको यह जानने में छब्बीस वर्ष लगेंगे, जब वे भी तुम्हें छोड़ जाएँगे जिनके जाने की कल्पना भी तुमने नहीं की थी। वह मिलेंगी तुमको, तुम्हारे सबसे अकेले अकेलेपन में। एडिपल।
उनके न रहने से तुम दूसरों की कथा में रहे हो। उनके न होने से कोई तुम्हारी कथा में नहीं आया है। तुम्हारी सारी स्मृतियों में वह तुम्हारी हैं, सिर्फ़ तुम्हारी। और यह समझते हुए तुम इतने दूर हो गए हो सब से कि एक शांत नीरवता से भर गए हो। जैसे तुम हमेशा जानते थे कि तुमको यहीं आना है। वह एक राज़ की तरह हैं, कम-से-कम तुम्हारे महसूस करने में। वह किसी मेटाफर में पिघलाई नहीं जा सकेंगी। क्या वे तुम्हारी असंभावना के नशे की उपज हैं? कभी किसी स्त्री के कहने पर तुमने तय किया था कि तुम जीवन को साहित्य से नहीं मिलाओगे। पर तुम भूल जाते हो। क्या तुम उनके होने में अपने होने की वजहों को ढूँढ़ रहे हो?
तुमको अपने सबसे अँधेरे कोनों में किसी दृश्य से परे वह मिलती रही हैं और तुम उनको अपने अध्ययनों में छिपाते रहे हो ख़ुद से, भूलते भी रहे हो। लेकिन उनको ऐसे ही अचानक मिल जाना था। तुम कई बार सोचते रहे हो कि तुम मरने के समय क्या याद करोगे, किसके लिए सफ़रिंग का उल्लास महसूस करोगे? इस प्रश्न के अंत में तुमने बार-बार अलग अलग चेहरे भरे हैं। तुम समझ जाओगे कि तुमने एक चेहरे को ही रिप्लेस किया है। चूँकि तुम्हारी नैतिकता उनसे दूर करती रही है, तुम उनके विकल्प खोजते रहे हो। भटकाव आत्मस्वीकृति से ख़त्म हो जाता है। हो जाना चाहिए। न मिलने की बेचैनी और भटक में फ़र्क़ होता है। दूसरी स्त्रियों की देह अब तुम्हारे लिए कोई अर्थ नहीं रखती। दूसरी स्त्रियों का दिया अर्थहीन हो गया है। दुनिया अब एक अलग डिस्कोर्स है तुम्हारे लिए। तुम अपने लिए एक केस स्टडी बन गए थे। तुम अब अपना मूल देखने लगे हो। क्या यह आख़िरी साक्षात्कार है? यह पहला तो है ही।
तुम उनका हाथ अपने कंधे पर चाहते हो। तुम्हारी मासूमियत की इकलौती संरक्षक वही रही हैं। वहाँ तुम्हारी ज़िम्मेदारियों और समस्याओं का अंत है। तुम दूसरों से इतना कुछ चाहते रहे हो, अमानुषिक भी क्योंकि तुम्हारा ख़ालीपन उनके न होने से बना है। लेकिन तुम किसी और से क्षमा मत माँगो। दूसरा बग़ैर क़ीमत तुमको कभी नहीं मिला है। तुम उनके अभी के जीवन की कल्पना नहीं करना चाहते। तुमको लगता है कि तुम्हारी कोई भी तुलना उनके होने को मलीन कर देगी। तुम मानना नहीं चाहते पर तुमने उनके अभी के जीवन के बारे में बहुत सोचा है। वह इतनी बड़ी दुनिया में खो चुकी हैं। तुमको जितने मौक़े मिले हैं, तुमने उनको खोजा है। वही तुम्हारी बेख़ुदी की लैला हैं, तुम उनके ही जुनून में पगलाए हुए ग़ालिब हो।
वह बहुत छोटा-सा एक कमरा है, जो समझदारियों और सीढ़ियों से बना है। सब वहाँ से आगे जाना चाहते हैं। तुम ताउम्र वहीं रह जाना चाहते हो। वहाँ नीली बेंचें हैं। तुम छोटे, बहुत छोटे हो। तुम पर अभी कोई दाग़ नहीं लगा। तुमने अभी सही ग़लत का कोई पाठ नहीं पढ़ा है। तुम इंतज़ार में हो। तुमको उनके मुस्कुराने का इंतज़ार है और इतनी बेसब्री है कि सिकेनिंग हैं। यही एक क्षण आगे हर कुछ परिभाषित करने वाला है। तुमने उनकी आवाज़ सुनी है हालाँकि अब उसका भी कोई रेशा तुम्हारे पास नहीं है। जो है सोचा हुआ है पर स्मृति के कच्चे माल से बना है। और लोगों से बात करते हुए वे आएँगी। तुम बेंच पर आगे झुकोगे। पूरी ज़िंदगी किसी भी बेंच पर तुम वैसे ही बैठोगे। तुम उनकी उँगलियों में फँसी चॉक को देर तक देखते रहोगे। उनकी कलाई पर एक काला धागा बँधा है। उनके एक हाथ पर घड़ी बंधी है। उनके दुपट्टे के एक सिरे पर चॉक की सफेद धूल लग गई है। क्या इसीलिए गाढ़ा नीला तुम्हारा सबसे प्रिय रंग है? कुछ लिखने के बाद वह तुम्हारी ओर मुड़ी हैं। वह तुम्हें देख कर हँस रही हैं। यहाँ से तुमको कहीं नहीं जाना। सब पूरा है।
पूरी ज़िंदगी में तुमने इतनी ही यात्रा की है। पूरी ज़िंदगी में तुम इतना ही भर लौटना चाहते हो।
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