
पराई स्त्री और पराया धन जिसके मन को अपवित्र नहीं करते, गंगादि तीर्थ उसके चरण-स्पर्श करने की अभिलाषा करते हैं।

मेघ वर्षा करते समय यह नहीं देखता कि वह भूमि उपजाऊ है या ऊसर। वह दोनों को समान रूप से सींचता है। गंगा का पवित्र जल उत्तम और अधम का विचार किए बिना सबकी प्यास बुझाता है।

पार्वती और गंगा हमारे अस्तित्व का ही मेरुदंड है। हमारे भीतर और बाहर जो कुछ उत्तम है, जो कुछ सुंदर है, जो कुछ पवित्र है, उसको प्रतीक रूप में पार्वती और गंगा व्यक्त करती हैं।