
संतोष की भाषा धीमी होती है, क्योंकि वह शब्दों और मौन दोनों में व्यक्त होती है।

त्यागने की संतुष्टि और अनुभव की संतुष्टि में बहुत बड़ा अंतर है।

प्रेम एक पर्याप्त ‘यौन-संतुष्टि का परिणाम’ क़तई नहीं है। उल्टे यौन-सुख—और तथाकथित यौन-तकनीकों का ज्ञान भी—‘प्रेम का परिणाम’ होता है।

…यही लिखने की संतुष्टि है कि कोई इतने सारे लोगों की नक़ल कर सकता है।