संतोष की भाषा धीमी होती है, क्योंकि वह शब्दों और मौन दोनों में व्यक्त होती है।
त्यागने की संतुष्टि और अनुभव की संतुष्टि में बहुत बड़ा अंतर है।
…यही लिखने की संतुष्टि है कि कोई इतने सारे लोगों की नक़ल कर सकता है।
संतोष की भाषा धीमी होती है, क्योंकि वह शब्दों और मौन दोनों में व्यक्त होती है।
त्यागने की संतुष्टि और अनुभव की संतुष्टि में बहुत बड़ा अंतर है।
…यही लिखने की संतुष्टि है कि कोई इतने सारे लोगों की नक़ल कर सकता है।