
जीवन का प्राथमिक प्रसन्न उल्लास मनुष्य के भविष्य में मंगल और सौभाग्य को आमंत्रित करता है। उससे उदासीन न होना चाहिए।

जीवन-शुद्धि और जीवन-समृद्धि यही हमारा आदर्श हो।

सौभाग्य न होना किसी के लिए दोष नहीं है। समझकर सत्प्रयत्न न करना ही दोष है।

ईमानदारी वैभव का मुँह नहीं देखती, वह तो मेहनत के पालने पर किलकारियाँ मारती है और संतोष पिता की तरह उसे देखकर तृप्त हुआ करता है।