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उपभोग पर उद्धरण

जब तक भोग और मोक्ष की वासना रूपिणी पिशाची हृदय में बसती है, तब तक उसमें भक्ति-रस का आविर्भाव कैसे हो सकता है।

रूप गोस्वामी

जो अधीर और असमर्थ होते हैं, उनमें उत्साह उत्पन्न नहीं होता। प्रायः उत्साही पुरुष ही राजसंपत्ति का उपभोग करते हैं।

भास

विषय-भोग की इच्छा विषयों का उपभोग करने से कभी शांत नहीं हो सकती। घी की आहुति डालने से अधिक प्रज्वलित होने वाली आग की भाँति वह और भी बढ़ती ही जाती है।

वेदव्यास